मंगलवार, 16 जून 2020

तुम और तुम्हारी चाय-Tum our tumhari chai

कविता- तुम और तुम्हारी चाय

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मैं चाय नहीं पीता था
तुम्हें पीते हुए देखा
तो लत लग गई
चाय की/तुम्हारी
अचानक तुम कब
चाय पीते पीते
काॅफ़ी पीने लगे
पता ही नहीं चला
और मैं आज भी
चाय के लिए
तरसता रहता हूँ
तुम बनाते थे
तो मैं पीता था
तुम्हें मालूम था न?
मुझे चाय बनानी नहीं आती।

तुम्हारे वाला किस्सा फिर कभी...

~नीरज आहुजा
स्वरचित रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित