ग़ज़ल
बह्र- 2122 1212 22
याद में नग़्मगी नहीं होती
आँख मेरी भरी नहीं होती
तुम अगर ना मुझे मिले होते
मुझसे यूँ शायरी नहीं होती
हसरतें टूट कर बिखरती हैं
अब यहाँ ज़िन्दगी नहीं होती
चाँद बनकर न दिल धड़कना तुम
दिल में जब चाँदनी नहीं होती
दिल कहीं और मैं कहीं खोया
इस तरह बेखुदी नहीं होती
मैं कदम से मिला कदम चलता
तुम अगर सोचती नहीं होती
जब से हो छोड़ कर गये मुझको
मुझसे फिर दिल्लगी नहीं होती
बात कुछ तो अलग लगी तुम में
वर्ना तुम आखिरी नहीं होती
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नीरज आहुजा