गुरुवार, 17 सितंबर 2020

ग़ज़ल : याद में नग़्मगी नहीं होती - yaad me nagmagii nhi hoti

 ग़ज़ल 

बह्र- 2122 1212 22 

याद में नग़्मगी नहीं होती

आँख मेरी भरी नहीं होती


तुम अगर ना मुझे मिले होते

मुझसे यूँ शायरी नहीं होती


हसरतें टूट कर बिखरती हैं

अब यहाँ ज़िन्दगी नहीं होती


Neeraj kavitavali

चाँद बनकर न दिल धड़कना तुम

दिल में जब चाँदनी नहीं होती


दिल कहीं और मैं कहीं खोया 

इस तरह बेखुदी नहीं होती


मैं कदम से मिला कदम चलता

तुम अगर सोचती नहीं होती


जब से हो छोड़ कर गये मुझको

मुझसे फिर दिल्लगी नहीं होती


बात कुछ तो अलग लगी तुम में

वर्ना तुम आखिरी नहीं होती

--------

नीरज आहुजा