मंगलवार, 4 अगस्त 2020

मन कितना समझाकर देखा - mann kitna samjhakar dekha


Neeraj Kavitavali

"मन कितना समझाकर देखा"
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 मुक्तक 

बहलाकर फुसलाकर देखा, मन कितना  समझाकर देखा
काम वही  फिर करता  है  ये, धोखा जिसमें खाकर देखा
रोज   उठाता  हूँ   मैं  इसको,  गिरा   पड़ा   जब  देखूँ तो
मुकर गया कथनी से अपनी, काग़ज़ पर लिखवाकर देखा
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नीरज आहुजा 
स्वरचित