मंगलवार, 25 अगस्त 2020

ग़ज़ल: प्यार के क़ाबिल नहीं - pyar ke kabil nhi

ग़ज़ल

बह्र- 2122/2122/212

-------------------

दोस्ती गर प्यार के क़ाबिल नहीं 

यार भी फिर यार के क़ाबिल नहीं

Neeraj kavitavali

****

बिक गया जो खुद किसी अहसान में

फिर कहीं ख़रिदार के क़ाबिल नहीं

****

पास वो ही तो नहीं आता मिरे

जो कि इस ख़ुद्दार के क़ाबिल नहीं

****

डूब जाती हैं समंदर बीच जो

कश्तिया़ँ मझदार के क़ाबिल नहीं

****

गर कहीं फैला सके ना सनसनी

क्या ख़बर अख़बार के क़ाबिल नहीं 

****

बात बिन ही जो लगा इल्जाम दें

फूल होते खार के क़ाबिल दें

****

आँख से ही पी लिया जिसने बदन

वो नज़र दीदार के क़ाबिल नहीं 

****

जानते तो हैं सभी पर मौन है

ज़िन्दगी की मार के क़ाबिल नहीं 

****

तोड़ दें जिस आदमी को मुश्किलें 

जिंदगी की मार के क़ाबिल नहीं

****

है दवा तू ही तो इस दिल की सनम

बाकी सब बीमार के क़ाबिल नहीं

----------

नीरज आहुजा