ग़ज़ल
बह्र- 2122/2122/212
-------------------
दोस्ती गर प्यार के क़ाबिल नहीं
यार भी फिर यार के क़ाबिल नहीं
****
बिक गया जो खुद किसी अहसान में
फिर कहीं ख़रिदार के क़ाबिल नहीं
****
पास वो ही तो नहीं आता मिरे
जो कि इस ख़ुद्दार के क़ाबिल नहीं
****
डूब जाती हैं समंदर बीच जो
कश्तिया़ँ मझदार के क़ाबिल नहीं
****
गर कहीं फैला सके ना सनसनी
क्या ख़बर अख़बार के क़ाबिल नहीं
****
बात बिन ही जो लगा इल्जाम दें
फूल होते खार के क़ाबिल दें
****
आँख से ही पी लिया जिसने बदन
वो नज़र दीदार के क़ाबिल नहीं
****
जानते तो हैं सभी पर मौन है
ज़िन्दगी की मार के क़ाबिल नहीं
****
तोड़ दें जिस आदमी को मुश्किलें
जिंदगी की मार के क़ाबिल नहीं
****
है दवा तू ही तो इस दिल की सनम
बाकी सब बीमार के क़ाबिल नहीं
----------
नीरज आहुजा