ग़ज़ल : जिनकी ऊँची दुकान होती है
बह्र- 2122 1212 22
जिनकी ऊँची दुकान होती है
तो अकड़ आसमान होती है
मार देते हैं तीर नज़रों के
आँख में क्या कमान होती है
ज़िन्दगी मौत की तरफ़ बहती
मौत जानिब ढलान होती है
ख़ास कुछ काम भी नहीं होता
काम देखूँ, थकान होती है
टूट जाते हैं इस लिए रिश्ते
तल्ख़ अक्सर ज़बान होती है
छूट दिल यह कभी नहीं पाता
याद ऐसी लगान होती है
हम किनारें हैं मिल नहीं सकते
इक नदी दरमियान होती है
दिल कहे कुछ दिमाग कुछ, दोनो
में बहुत खींच-तान होती है
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नीरज आहुजा