मंगलवार, 15 सितंबर 2020

ग़ज़ल : जिनकी ऊँची दुकान होती है

 ग़ज़ल : जिनकी ऊँची दुकान होती है


बह्र- 2122 1212 22

जिनकी ऊँची दुकान होती है

तो अकड़ आसमान होती है



मार देते हैं तीर नज़रों के

आँख में क्या कमान होती है


ज़िन्दगी मौत की तरफ़ बहती

मौत जानिब ढलान होती है 


ख़ास कुछ काम भी नहीं होता

काम देखूँ, थकान होती है


टूट जाते हैं इस लिए रिश्ते

तल्ख़ अक्सर ज़बान होती है


छूट दिल यह कभी नहीं पाता

याद ऐसी लगान होती है


हम किनारें हैं मिल नहीं सकते 

इक नदी दरमियान होती है


दिल कहे कुछ दिमाग कुछ, दोनो

में बहुत खींच-तान होती है

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नीरज आहुजा