मंगलवार, 30 जून 2020

लहरों से टकराना है - lehron se takrana hai

लहरो   से   टकराना  है, उनको  चीर  दिखाना  है
तुफानों  से  लड़ना  हमको, पार  समंदर  जाना है
राहों  में  आती  बाधा, या  अड़चन  जितनी  देखो
अनुगामी  बन  साहिल  के, सबको  दूर  हटाना है

बाण  चढ़ा  प्रत्यंचा   पर, पीछें   को  खींचा  जाता 
लक्ष्यों  को  निर्धारित कर, साहस  से  सींचा जाता
मंजिल मिलती तब हमको, चलें निरंतर जो पथ पर
एक आँख  इक  राह  रहे, लगे  सटीक  निशाना  है

सोमवार, 29 जून 2020

मजदूरी-एक कविता

जो तोड़ता है पतथर
क्या वही मजदूर है? 
या जो घुमाता दिन भर
बाईक सड़को पर
पिज्जा की डिलीवरी के लिए, 
उसको भी मजदूर कहेंगे। 
जो चलाता हो उंगलियों को
कैल्कुलेटर और की. बोर्ड पर,
खपाता हो दिमाग अपना
हिसाब किताब के लिए 
थकान तो उसे भी बहुत होती होगी।
एक लेखक जो
कुछ अच्छा लिखने की चाहत में
दिन भर सोचता है
और रात भर जागता है
जब तक कि कुछ अच्छा
लिख न ले तो उसे
चैन नहीं पड़ता। 
क्या इसे भी मजदूरी कहेंगे? 
या फिर मजदूरी होती है
मिट्टी को खोदना ही।

~नीरज आहुजा
स्वरचित

रविवार, 28 जून 2020

वर्चस्व की चाहत- varchasv ki chahat

तुम्हें मेरे
मंन के तंत्र पर
भरोसा नहीं
तुम चाहती हो
आपातकाल
जहाँ सिर्फ चले
तुम्हारी ही मन मर्जी
तुम्हारा ही वोट
तुम्हारा अधिकार।
तुम्ह पसंद नहीं
मुझे कोई और देखे, छूए
या बात करे
मैं जानता हूँ
तुम चाहती हो मुझपर
वर्चस्व अपना
सदा सदा के लिए। 

नीरज आहुजा 
स्वरचित 

शनिवार, 27 जून 2020

हाँ वतन आजाद है- han vatan azaad hai

हाँ वतन आजाद है
हाँ वतन आजाद है।।

शीष कटे खेली थी होली
दिए प्राण खाकर गोली
चढ़ गए फांसी दे दी जान
ऐसे वीर बने महान
बलिदानों की धरा पर
हुआ भारत आबाद है
हां वतन आजाद है।। 

यूं ही नहीं आई आजादी
पहन के कुर्ता वस्तु खादी
दिया था नारा देश को
छोड़ दो फिरंगी भेष को
इसलिए हम संजीदा है
इसलिए तो हम शाद है 
हां वतन आजाद है।। 

इस धरती का खेल निराला
दिया फिरंगी देश निकाला
जो भी आया गया जान से
कहते है हम सभी शान से
दुश्मन की छाती पर हमने
हरदम भर दी गाद है
हाँ आज वतन आजाद है।।

नीरज आहुजा 
 स्वरचित 

शुक्रवार, 26 जून 2020

आधे अधूरे रिश्ते- Aadhe adhoore rishte

आधे अधूरे रिश्ते
मत निभाओ।
छोड़ो इन्हें तोड़ो इन्हें
हो जाओ नजरों से दूर
हमेशा हमेशा के लिए 
दर्द देंगी
चटक जाएगी
दिल की मेरुदंड
जब मिलेगा धोखा
होगा अहसास
दर्द का
टूटने का
तब तक हो जाएगी
बहुत देर
फिर न खड़े हो पाओगे
रह जाओगे असहाय
अपंग बनकर
इसलिए कहता हूँ 
जो करो दिल से करो
एक ही तो दिल है
हर किसी पर मत मरो 

गुरुवार, 25 जून 2020

दिल्ली ने भारत ना देखा-dilli ne bharat na dekha

दिल्ली ने भारत ना देखा
अपनी बस सीमाएं देखे
खुदगर्जी में लिपटी रहती
मुफ्त   की   सेवाएं  देखे

राजनीति जो करनी होती
लटके  रहते    सब   मुद्दे
राम मंदिर भी  न  बनता
और लगी रहती   35-A
बीमारी की जड़ ना देखी
जहरीली   हवाएं    देखे
खुदगर्जी में लिपटी रहती
मुफ्त  की   सेवाएं   देखे

जान बची सो लाखो पाए
वो  जमाना   बीत   गया
दे  कुर्बानी  हार  गए सब
बिजली पानी  जीत  गया
लहू बहाया वो ना दिखता
ना  जलती  चिताए  देखे 
खुदगर्जी में लिपटी रहती
मुफ्त   की   सेवाएं   देखे 

~नीरज आहुजा
स्वरचित 
सर्वाधिकार सुरक्षित 

बुधवार, 24 जून 2020

दल और दिल - dal aur dil me antar


dal aur dil me antar

प्यार और राजनीति दोनों में
यहीं तो फर्क है।
'दल' हार जाएंगे
तो कर लेंगे गठबंधन, 
बना लेंगे सरकारें, 
करेंगे राज। 
मगर जब 'दिल' हारेगा
तो होगा बिखराव, 
टूटेंगे रिश्ते, बहेंगे आँसूं,
होगा असहनीय दर्द। 
'दल' बातों को दिल पर नहीं लेते,
'दिल' लेता है। 
'दल' प्रगतिशील होते है
और 'दिल' रुढ़िवादी
परम्पराओं में बंधा हुआ
एक ढकोसले बाज। 
'दल' और 'दिल' के शब्द में
महीन सा फर्क
दोनों के व्यवहार
और आचरण में
कितना फर्क कर देता है, 
कि दोनों एक दूसरे के
विपरीत नजर आने लगते है।

~नीरज आहुजा 
स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित 


मंगलवार, 23 जून 2020

कुण्डलिया छंद - kundaliya chhand

कुण्डलिया छंद

1. विषय : मिट्टी के रंग

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ढल जाती हर रूप में, चाहे जिसमें ढाल
मिट्टी   के हैं रंग बहु, अम्बर से पाताल
अम्बर से पाताल, स्वरूप इसके निराले
अंग रंग,व्यवहार, बदल आकृति को डाले
'नीर' कहे संतोष और है मिट्टी में बल
जैसा हो परिवेश , जाती उसमें स्वयं ढल 
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2

विषय : चुप रहकर

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रहकर चुप है रह गई, भारी मन पर टीस
कह देते तो टूटते, पूरे ही बत्तीस
पूरे ही बत्तीस, लगवाते नया जबड़ा
लेता हूँ ना मौल, इसलिए उससे झगड़ा
सौच समझ कर नीर, भावना में ना बहकर
रखना दिल की बात, शिष्टता में ही रहकर
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3

विषय: समय बड़ा बलवान

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करता सबका फैंसला, समय बड़ा बलवान
जिस पल भूले हम इसे, देता तिस पल ज्ञान
देता तिस पल ज्ञान, लेकिन पड़े पछताना 
मुँह से निकले राम, रोना और कुरलाना
नीरज करता भूल, नहीं क्यूँ फिर भी डरता
समय न देता छोड़, न्याय ये सबका करता
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4

विषय: मुम्बई मैट्रो विरोध

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'आरे' की जमीन पर, कर रहे घमासान 
मत काटो तुम पेड़ को, 'मरता मर इंसान' 
मरता मर इंसान, सड़क दुर्घटनाओं में
पर मैटरो विरोध, करेंगे चौराहों में
समझ रहे सब लोग, चर्च फिरे मारे मारे
चाहता है जमीन, हड़पना जंगल 'आरे' 
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5

विषय: सम्बंध विच्छेद

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अब जरूरी हो गया, है तुमसे विच्छेद
जब से है यह तय हुआ, मन दोनो में भेद
मन दोनों में भेद, करेंगे खूब लड़ाई
देगा फिर चहुँओर, तू-तू मैं-मैं सुनाई 
'नीर' करे अनुरोध, सही बात जान लें सब 
निकला यह निष्कर्ष, हो जाएं अलग हम अब
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6
विषय: खटपट
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कोई तुमसे सीख ले, रिश्ते देना तोड़ 
कैसे देते हाथ को, बीच राह में छोड़
बीच राह में छोड़, यूँ भागते तुम सरपट
हो गए परेशान, हुई जो थोड़ी खटपट
'नीर' जिसे दे भाव, दगा दे जाता सोई
किस पर करूं यक़ीन, साथ ना देता कोई 
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7

 विषय: पी. के. डी. मिशन

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पी के डी है क्या बला, रात दिन यही सोच
सोच सोच कर आ गयी, है दिमाग में मोच
है दिमाग में मोच,अंशुल भईया बतला
नोच नोच कर बाल, हो न जाऊं मैं टकला 
पगलाने को 'नीर' , होने लगा है रेडी 
जल्दी से दो बोल, क्या है मिशन पी के डी
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8

विषय: करवा चौथ का बदल

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भरपाई करने लगी, "बदला करवा पूज"
करवे के दिन थी मधूर, आज बदल गई कूज
आज बदल गई कूज, फेंकती मुख से शोले
ले बदले की आग, न जाने क्या-क्या बोले
कहती जितनी सांस, इस बंदर की बढ़ाई
पंखे खिड़की साफ, हो कराकर भरपाई
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9

विषय : तोता-मैना

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तोता मैना पर नज़र, रखता है दिन रात
दूर-दूर से देखता, पर करता ना बात
पर करता ना बात, क्योंकि हुई थी लड़ाई
तोते को जब बोल, गई थी मैना भाई
कहे 'नीर' हर बार, यूँ ही तो नहीं होता
मैना हो जिस डाल, उसी पर बैठे तोता 
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10

विषय: चीत्कार

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रहते जितना पास तुम, उतना बढ़ता प्यार
हो जाते हो दूर जब, मन करता चीत्कार
मन करता चीत्कार, नाम लेकर के तेरा
बिन तेरे सब सून, लगता जी नहीं मेरा
रहा 'नीर' ये सोच, क्यूँ तुम कुछ नहीं कहते
अब तो दो कुछ बोल, चुप इतना नहीं रहते
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11

विषय: सच नहीं लिखते

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लिखते क्यूँ ना बात वो, जिसमें कि हो निचोड़ 
बचा-खुचा ही लिख रहे, सभी पुलिंदा छोड़
सभी पुलिंदा छोड़, झूठ बाकी का बोलें
करने लगें कुर्तक, नहीं तराजू पर तोलें
छोड़ विषय अब मूल, बेकार बातें करते
सच पर परदा डाल, जो मन कहे सो लिखते 
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12

विषय: राम मंदिर

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आएंगे वनवास से, लोटेंगे श्री राम
निश्चित तो यह हो चुका, बन जाएगा धाम 
बन जाएगा धाम, तारीख अब तुम पूछो
करते रहे विरोध, षड्यंत्र नया कोई बूझो
करलो जितना शोर, मंदिर हम बनाएंगे 
हर मुख होंगे बोल, राम लल्ला आएंगे
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13

विषय: व्यर्थ समय गवाना

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बीते साल न कुछ किया, सोचा किया विचार
लेकिन समझ नहीं पड़ा, कैसे दिया गुजार
कैसे दिया गुजार, सोच कर ये पछताया
किया न अर्जित ज्ञान, और न धेला कमाया
'नीर' करो कुछ काम, व्यर्थ जीवन क्यूँ जीते
समय हाथ की रेत, हाथ से फिसले, बीते
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14

विषय : मंगलमय नववर्ष हो

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मंगलमय नववर्ष हो, हो ना उन्नीस बीस
इच्छा पूरी हो सभी, दो भगवान असीस
दो भगवान असीस, रहमत सभी पर बरसे
रहे कोई न दीन, धन दौलत को न तरसे
आपस में सब 'नीर', रहें प्रेम से बिना भय
सब मे हो सद्भाव, नववर्ष हो मंगलमय 
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15

विषय: रोटी-पानी 

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रोटी भूखे को मिले, पानी जिसको प्यास
तन कपड़े से हो ढका, रहने को आवास
रहने को आवास, मिले सभी को जरूरी
रहे कोई न दीन, मांग हो सबकी पूरी
हिम्मत रखना 'नीर', कहो ना किस्मत खोटी 
देता पालनहार, सभी जीवों को रोटी
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16

विषय: गोपी-गोप

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बनकर बैठे पेड़ के, नीचे गोपी गोप
एक पंथ दो काज कर, बूटा भी दो रोप
बूटा भी दो रोप, साथ लो खुरपी पानी
उनको भी हो लाभ, पीढ़ी जो अभी आनी
'नीरज' ऐसी प्रीत, सब ही करेंगे जमकर
जो आए त्योहार, पर्यावरण का बनकर
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17

विषय: धोखेबाज 

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पकड़े बैठी बाग में, वो दूजे का हाथ
किरचा किरचा मन हुआ, देख किसी के साथ
देख किसी के साथ, माथा दिया ठनकाया
कैसी धोखेबाज, से मैंने दिल लगाया
'नीरज' तुझसे बात, करते बहुत थी अकड़े
आज हुआ मालूम, गये दोनो जब पकड़े
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18

विषय: कोरोना

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हावी पल मे हो पडे़, हुई जरा जो चूक
सावधान रहना सभी, सुनो बात दो टूक
सुनो बात दो टूक, कोरोना है भयंकर
खड़ा हुआ ये देख, सामने सीना तनकर
सुनो सखा तुम 'नीर', उठाओ कदम प्रभावी
इसका नहीं इलाज, अगर हो जाए हावी
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नीरज आहुजा 
स्वरचित रचना 
सर्वाधिकार सुरक्षित 

सोमवार, 22 जून 2020

स्वप्न लोक- एक हास्य कविता ( swapn lok ek hasya kavita)

स्वप्न लोक में जलघर
जलघर में जलपरी
जलपरी गोते लगाए
देखे बिना रहा न जाए

परी थी बहुत सुंदर
उछला मन का बंदर 
जीते जी अनुभव हुआ
स्वर्ग सदृश हम पाएं

मन में हुआ आभास
जाकर देखूँ पास
सत्य है, या है मिथ्या
कैसे पता लगाएं

कूद गए थे जल में
बिन सोचे ही पल में
झट से खूल गई नींद
गिरे पलंग से धांय

हड्डी न कोई टूटी
लेकिन किस्मत फूटी
स्वप्नलोक की परी को
हम छू भी ना पाएं

रविवार, 21 जून 2020

लिखे थे खत तुझे- likhe the khat tujhe

लिखे थे खत तुझे
चरागों तले
अंधेरी रातों में
सोचकर तुझको
कि तुम आ जाओ जो
अचानक से
सामने मेरे
तो मैं क्या कहूँगा। 
क्या मैं सकपका जाऊंगा 
या बोल दूंगा
दिल की सारी बातें
बेधड़क तुमको 
जो भी मैं सोचता हूँ
तुम्हारे बारें में
तन्हाई में बैठकर। 

क्या तुम भी सोचती हो
मेरे बारे में
इस तरह ही
या
मैं ही दीवाना हूँ
आशिक़ हूँ वगैहर वगैहर
जो भी होते है नाम
पागल प्रेमियों के। 

क्या तुम भी हो जाती हो
पागल, दिवानी
और लिखती हो
खत मुझे
इसी तरह ही
अंधेरी रातों में
तन्हाई में बैठकर 
सोचकर मुझको।

~नीरज आहुजा
स्वरचित रचना, सर्वाधिकार सुरक्षित 

शुक्रवार, 19 जून 2020

हार को जीत में बदलना है- haar ko jeet me badalna hai

कुंदन  बनना  है, जलना है
हार को जीत में बदलना है

हाथ पर  हाथ  धरे क्यों  बैठे
हम मुश्किल से डरे क्यों बैठे
पथ पर जो अवरोध बिछे हो
उनको पाँव तले  कुचलना है

हो जिजीविषा विश्वास अटल
धैर्य बुद्धि में, हो बाहों में बल
विफलता दामन पकड़े अगर
झटक कर  हाथ  निकलना है

हो दूर  भले  तट  जितना  भी
रख धैर्य मन में, बल उतना ही
मझधार ही जीवन  लक्ष्य नहीं
माझी को भंवर से निकलना है

~नीरज आहुजा
सर्वाधिकार सुरक्षित 

गुरुवार, 18 जून 2020

भूली बिसरी गलियाँ- bhooli bisri galiyan

वो भूली बिसरी गलियाँ पुरानी
कहाँ छोड़ आए है हम वो कहानी
वो गुजरा हुआ बचपन याद करलें
ढलती हुई भूलकर हम जवानी 

तपती हुई धूप में तर बदन हो
मन ये मगर खेलने मे मगन हो
बुलाते परिंदों को घोंसले थे
मगर बात हमने कहाँ थी मानी

लथपथ पसीने में हम झूमते थे
भरी दोपहर गलियां घूमते थे
गले सूखते थे दोस्तों के ही घर पे
घर अपने कब हम पीते थे पानी

झूलों से गिर के हंसने थे लगते
कपड़े हों गंदे तो चेहरे थे जगते
किसको बताएं अपनी गुजरिया 
पेड़ों पे लटकी कहाँ है निशानी

~नीरज आहुजा

मंगलवार, 16 जून 2020

तुम और तुम्हारी चाय-Tum our tumhari chai

कविता- तुम और तुम्हारी चाय

*******
मैं चाय नहीं पीता था
तुम्हें पीते हुए देखा
तो लत लग गई
चाय की/तुम्हारी
अचानक तुम कब
चाय पीते पीते
काॅफ़ी पीने लगे
पता ही नहीं चला
और मैं आज भी
चाय के लिए
तरसता रहता हूँ
तुम बनाते थे
तो मैं पीता था
तुम्हें मालूम था न?
मुझे चाय बनानी नहीं आती।

तुम्हारे वाला किस्सा फिर कभी...

~नीरज आहुजा
स्वरचित रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित 

सोमवार, 15 जून 2020

लहरें और चट्टान- lehren aur Chattaan

"लहरें और चट्टान" 

चट्टाने समेटती है,
रोकती है
विकराल विध्वंसक 
रूप को
स्वयं के नष्ट होने तक। 
लहरे करती है
प्रतिपादन
अपने स्वच्छंद
स्वरूप का। 
कोई रुष्ट है
तो कोई पुष्ट है
दोनों ही अपनी प्रवृति
अपना सोच-विचार लिए 
रहते हैं अनवरत
अपने कार्य पथ पर अडिग। 
लहरें काटती है
पीटती है
हर पल हर क्षण।
चट्टाने सहती है
चुप रहती है 
सकारात्मकता
लिए हुए 
लहरों के प्रहार को
बना लेती है श्रृंगार अपना। 
लहरों ने चट्टानों में
अवरोध देखा है
उसकी सूझबूझ
सहनशीलता, प्रेम और
सोच विचार नहीं देखा।

~नीरज आहुजा
स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित 

रविवार, 14 जून 2020

तुम बिन - tum bin


उस रात पढ़ा था
मैंने तुम्हें और तुम्हारी
प्रेम कविताएं को! 
और बनाकर उनकी कश्ती
बहा दिया था नदी में
क्योंकि मैं
देखना चाहता था
तुम और तुम्हारी
प्रेम कविताएं
नदी के हिचकोलों पर
तैरती हुई
कैसी दिखती है
लेकिन तुम लोटकर
नहीं आई
और मैं बैठा रहा
उस दिन तुम बिन
अकेले चुपचाप 
नदी किनारे। 
शायद तुम्हें और
तुम्हारी प्रेम कविताओं को
लहर मिल गई थी
और मुझे मिला था
तो सिर्फ अफसोस।। 

शनिवार, 13 जून 2020

गुजर जाओ चुपचाप - chup chaap guzar jao

चुपचाप गुजर जाओ
हलके से होले से
दबे पांव
करीब से मेरे
मुझे पता भी न चले
कि तुम कब आए थे
और कब चले गए।
तुम भी ओढ़ लो
मेरी खुशियों का चोला
और हो जाओ
मेरी खुशियों की तरह
ही मुक्तसर। 
ये कब आती है और
कब चली जाती है
मुझे पता ही नहीं चलता।

महिना मोहब्बत वाला - mahina mohobbat wala

वैलेंटाइन स्पैशल

महीना मोहब्बत वाला।
बने हर कोई दिल वाला।।

बन ठन के निकले हैं घर से।
समझे है, खुद को नन्दलाला।।

सूनी पड़ी है मोहब्बत कि गलिया।
हाथों में लेके फिरे प्रीत का प्याला।।

बन्द कमरा जहां सूरज कि पहुंच नहीं।
इन तमाम अन्धेरा को कहे हैं उजाला।।

~नीरज आहुजा 

स्वरचित