सोमवार, 31 अगस्त 2020

चाँद मक्कारी करता है - chaand makkari karta hai

चाँद मक्कारी करता है

Neeraj kavitavali

चाँद सितारों से मक्कारी करता है
कहता है यह दिल से यारी करता है
मरने पर मज़बूर किया है कितनो को
उस पर भी फिर यह हुशियारी करता है

हुस्न दिखाकर चैन पिटारा लूटेगा
कुछ दिन तक ही प्यार जुबां पर फूटेगा 
फिर इक दिन जब धोखा देकर चल देगा
आसमान से कोई तारा टूटेगा
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  नीरज आहुजा 


रविवार, 30 अगस्त 2020

मुक्तक : स्वीडन में दंगे - riots in sweden

मुक्तक : स्वीडन में दंगे

बह्र-1222/1222/1222/1222

Neeraj kavitavali

बुझाने को  हवस अपनी, सदा  कुहराम  करते  हैं। 
लगा तकबीर  के  नारे,  यह  कत्लेआम  करते   हैं। 
कभी स्वीडन कभी दिल्ली कभी कश्मीर पर हमला
हवाला दे किताबे-पाक  का,  सब  काम  करते  हैं। 
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नीरज आहुजा 




 

शनिवार, 29 अगस्त 2020

मुक्तक : चाँद बड़ा बातूनी है - chaand bda batooni hai

 चाँद बड़ा बातूनी है

Neeraj kavitavali

यह  चाँद  बड़ा  बातूनी   है, बातों में  उलझा देगा
नींद  उड़ा  देगा आँखों  से, पलको  तले दबा देगा
बात वात करके यूँ ही बस, रात निकालेगा अपनी
सुबह हुई  जैसे ही हमको, यह औकात बता  देगा
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नीरज आहुजा 

शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

मुक्तक : समय गुजरता जाता है - samay gujarta jata hai

समय गुजरता जाता है


Neeraj kavitavali


जैसा चाहा  वैसा  जीवन, जब  यह ना  बन पाता है

उम्मीदें  पर  पानी  फिरता, दुख  से जुड़ता  नाता है

ले  लेते  अवसाद  जनम  फिर  चिंता  में  डूबे  रहते

क्या पाया क्या खोया में ही, समय गुजरता जाता है

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नीरज आहुजा 

गुरुवार, 27 अगस्त 2020

मुक्तक : कोरोना का डर - Corona Ka Dar

 कोरोना के डर से

Neeraj kavitavali

बह्र- 1222/1222/1222/1222
मिलाना  हाथ  को  छोड़ा, करें  सब  दूर  से   बातें।
ज़रूरी  ना  अगर  हो   तो   नहीं  करते  मुलाक़ातें।
कि  कोरोना से  डर से तो कोई आता  नहीं घर पर
लगा जमघट नहीं सकते, निकल सकती ना बारातें।
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नीरज आहुजा 


बुधवार, 26 अगस्त 2020

मुक्तक : जीवन का अफ़साना लिख - Jeevan ka afsana likh

         मुक्तक : जीवन का अफ़साना लिख


Neeraj kavitavali

दुनिया है यह जलती शम्मा, खुद को इक परवाना लिख
चाहत  में   मरजाता   कैसे,  है  आतुर   दीवाना   लिख
बाद  मगर  मरजाने  के  तब,  याद  करेगी  यह  दुनिया
संघर्षों  में   कैसे   बीता,  जीवन   का  अफ़साना  लिख
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नीरज आहुजा 

मंगलवार, 25 अगस्त 2020

ग़ज़ल: प्यार के क़ाबिल नहीं - pyar ke kabil nhi

ग़ज़ल

बह्र- 2122/2122/212

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दोस्ती गर प्यार के क़ाबिल नहीं 

यार भी फिर यार के क़ाबिल नहीं

Neeraj kavitavali

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बिक गया जो खुद किसी अहसान में

फिर कहीं ख़रिदार के क़ाबिल नहीं

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पास वो ही तो नहीं आता मिरे

जो कि इस ख़ुद्दार के क़ाबिल नहीं

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डूब जाती हैं समंदर बीच जो

कश्तिया़ँ मझदार के क़ाबिल नहीं

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गर कहीं फैला सके ना सनसनी

क्या ख़बर अख़बार के क़ाबिल नहीं 

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बात बिन ही जो लगा इल्जाम दें

फूल होते खार के क़ाबिल दें

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आँख से ही पी लिया जिसने बदन

वो नज़र दीदार के क़ाबिल नहीं 

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जानते तो हैं सभी पर मौन है

ज़िन्दगी की मार के क़ाबिल नहीं 

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तोड़ दें जिस आदमी को मुश्किलें 

जिंदगी की मार के क़ाबिल नहीं

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है दवा तू ही तो इस दिल की सनम

बाकी सब बीमार के क़ाबिल नहीं

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नीरज आहुजा 

सोमवार, 24 अगस्त 2020

मुक्तक : पलटकर देख लेते तुम- palatkar dekh lete tum

 पलटकर देख लेते तुम

Neeraj kavitavali

रहा  पहले  न  जैसा  अब, बदल  सारा  गया  मौसम
खुशी रहती नहीं रुख पर, छलकती  आँख  है  हरदम
गये  हो  देस  किस तुम, छोड़  कर  हमको, बता  देते
हुआ है  हाल  क्या  पीछे,  पलट  कर  देख  लेते  तुम
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नीरज आहुजा 

रविवार, 23 अगस्त 2020

कोरोना से घबराते - corona se ghabrate


कोरोना से घबराते 

Neeraj kavitavali

सत्ता के गलियारों से हर, यह आवाजें निकल रही, 

घर पर बैठो, बाहर सबको, बीमारी है निगल रही।

अर्थव्यवस्था और  चिकित्सा, में उन्नत  माने जाते, 

देश आज  लाचार   हुए   वो, कोरोना से घबराते।

भारत में जो फैल गया, ना  रोग  सँभाला जाएगा, 

किया अगर सहयोग न हमने, हाहाकार मचाए गा।

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नीरज आहुजा 

स्वरचित 

शनिवार, 22 अगस्त 2020

ग़ज़ल: हँस हँसाकर चलो - has hsakar chalo


ग़ज़ल 
बह्र-122/122/122/12
खुशी  के  लम्हे   को  चुरा  कर  चलो
जियो   जिंदगी   हँस   हँसाकर  चलो

अगर  सोचते  हो   कि  फुरसत  मिले
नहीं   फिर   मिलेगी  लगाकर   चलो 

Neeraj kavitavali


न  कल  का पता है न पल की खबर
खुदा फिर क्यूँ खुद को बनाकर चलो

नहीं  साथ  कुछ  भी  किसी के गया 
मिला  जो  यहाँ  सब  लुटाकर  चलो

गया   दूर   जो  भी   उसे   लो  बुला 
हुआ   फासला  तो   मिटाकर  चलो

कमी   देखने   की   है   आदत  बुरी
रहो   दूर  खुद   को   बचाकर  चलो 

उड़ो   आसमां    में  कहीं भी  मगर 
जमीं  को   जमीं  तो  बनाकर  चलो
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नीरज आहुजा 

 

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

जिंदगी की रील में -Zindagi ki reel me


"ज़िन्दगी की reel में"

Neeraj kavitavali

ज़िन्दगी की reel में

कोई cut paste की

option नहीं होती।

सब कुछ निरंतर

play होता रहता है।

किसी director को

action और cut कहने की भी

जरूरत नहीं पड़ती।

संवाद भी लिखित नहीं होते।

और retake भी नहीं लिया जाता।

हर shot को perfect

shot मान लिया जाता है।

किरदार भी acting नहीं करते

बल्कि उन्हें जीना पड़ता है

हर परिस्थिति को

अपनी सूझ बूझ और

क्षमता अनुसार। 

जिन्दगी की रील

किसी 70 mm के परदे पर

release नहीं होती।

बल्कि ये तो

किसी theater पर चल रहे

drama की तरह

चलती है live.

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नीरज आहुजा 

स्वरचित 

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मानो मेरी अब - Maano meri ab

 मानो मेरी अब 

दस्तक देते हाथ थके
बोल बोल कर लब
खोलो दिल का दरवाज़ा 
मानो मेरी अब

Neeraj kavitavali

रोज तुम्हारी राहों में
लेकर अपना दिल आता
गीत प्रेम के लिखता था
गीत प्रेम के हूँ गाता
कब तलक सताओगे
मीत बनोगे मेरे कब

खोलो दिल का दरवाज़ा 
मानो मेरी अब

चंदा मेरा यार बन गया 
तारों से हो गई दोस्ती
तुम होती तो अच्छा होता
मिलकर करते मस्ती
चाँद सितारे शबनम 
करते सिफारिश सब

खोलो दिल का दरवाज़ा 
मानो मेरी अब

समय गवाना,पछताना
मानोगे नहीं बात
मैं देता हूँ प्रेम प्रस्ताव
तुम देते आघात 
जानोगे क्या प्रीत मेरी
मर जाऊंगा तब

खोलो दिल का दरवाज़ा 
मानो मेरी अब

पल पल करके कितने ही
गुजर गए दिन साल
कभी तो मुझसे पूछा होता
तुमने मेरा हाल
बुलबुला नहीं पानी का
जो जाता पल में दब

खोलो दिल का दरवाज़ा 
मानो मेरी अब

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 नीरज आहुजा 

स्वरचित 


बुधवार, 19 अगस्त 2020

सब अच्छा हो जाएगा - sab achchha ho jayega

"सब अच्छा हो जाएगा" 

Neeraj kavitavali

बदलती है रुत,

मौसम और समय भी।

एकरस इस संसार में

क्या रह पाएगा।। 

जो आज है कल नहीं।

जो कल होगा वो परसो नहीं।

वक्त का पहिया घुमेगा और

सब कुछ बीता जाएगा।। 

यही धारणा लिए मन मे

पड़ता है जीना 

भले हो दु:ख कितने भी

हार नहीं मान सकते

रखनी पड़ती है आशा

अच्छा होने की

और कहना पड़ता है

सब अच्छा हो जाएगा ।।

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नीरज आहुजा 

स्वरचित 

मंगलवार, 18 अगस्त 2020

छुपते फिरते हैं - Chhupte firte hai


"छुपते फिरते हैं"

छुपते फिर रहे हैं

अपनी सोच से

द्वंद से, विचारों से। 

भाग जाना चाहते है 

खुद से कहीं दूर,

किसी वीरान जगह पर

जहाँ देख न पाएं

ढूंढ न पाएं खुद को।

Neeraj kavitavali

आँखें बंद कर लेना चाहते है

और दबा देना चाहते है

मन में कौंधते हुए

सवालों को

अंतर्द्वंद को

जैसे दबा दी जाती हैं

बहुत सी खबरें अक्सर 

सनसनी फैलने के डर से

शहर को बचाने के लिए।


बस इसी तरह

मस्तिष्क को भय और

आतंक के माहौल से

बचाने का एक तरीक़ा 

यह भी है कि

होने दिया जाए

जो हो रहा

और उसे ही

अपनी नियती मानकर

ऐसे रहें जैसे कि कुछ 

हुआ ही ना हो।

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नीरज आहुजा 

स्वरचित 

सोमवार, 17 अगस्त 2020

थोड़ी सी हँसी - Thodi si hasi


Neeraj kavitavali

"थोड़ी सी हँसी"

थोड़ी सी हँसी

बचाकर रखना

मेरे लिए

ताकी जब मैं तुमसे मिलूँ

तो तुम्हारे चेहरे पर

मेरे नाम की

एक हल्की सी

मुस्कान सजी हो।


अच्छा लगेगा मुझे

गर तुम ऐसा कर सको।

वैसे कोई उम्मीद नहीं

तुमसे कुछ पाने की

मगर फिर भी

पता नहीं क्यूँ

ख्वाहिश कर बैठता हूँ

जब भी देखता हूँ तुम्हें।

शायद सिर्फ इसलिए

कि मुझे तुमसे

बाते करना

तुम्हारे साथ वक्त बिताना और

तुम्हें यूँ ही कईं घंटो तक

टकटकी लगाकार देखना

अच्छा लगता है।

क्या तुमको भी

अच्छा लगता है

मुझसे बाते करना,

तुम्हारा नाम लेने भर से

मेरे चेहरे पर आने वाली

हल्की सी मुस्कान देखना?

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नीरज आहुजा 

स्वरचित रचना 

रविवार, 16 अगस्त 2020

शनिवार, 15 अगस्त 2020

चलते चलते राह में - Chalte chalte raah me

Neeraj kavitavali


"चलते चलते राह में"

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चलते चलते राह में

मिल जाते है जब हमें

अपने पुराने

खोए हुए पासवर्ड

तो धड़क उठता दिल

देखकर उनको

आता है तुफान

उफनती है लहरे

और टकराकर साहिल से

कह देना चाहती है

सब कुछ अपने दिल की 

मगर रोक लेते हैं खुद को

गोद में उनकी

एक बरस के छोटे से

किसी और आई डी से

जनरेट हुए

ओ टी पी देखकर।

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नीरज आहुजा 

स्वरचित 

शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

तुम अगर ख़फ़ा नहीं होती - Tum agar khafa nhi hoti

तुम अगर यूँ ख़फ़ा नहीं  होती

जिंदगी  ये  जफ़ा   नहीं  होती

आइना  देखकर  मुकर  जाऊं

अक्स में जिस दफ़ा नहीं होती

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

चाँद सितारे निकल गये-chand sitare nikal gye

 

Neeraj Kavitavali

चाँद सितारे निकल गये
मुक्तक 

रात  हुई  जैसे  तैसे  कर, चाँद  सितारे  निकल  गये

छुपे हुए थे मन भीतर भी , भाव  तुम्हारे  निकल गये

आँखों की  सरिताओं पर, जो बांध बनाकर बैठा था

शब्द उतारा काग़ज़ पर तो, जल के धारे निकल गये
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नीरज आहुजा 
स्वरचित 

बुधवार, 12 अगस्त 2020

वक़्त की मार - waqt ki maar

Neeraj Kavitavali

"वक़्त की मार"
बह्र- 2122/2122/2122/212
मुक्तक 

वक़्त  के  हाथों  पड़ी  है  मार जब  इन्सान को
याद करता आदमी फिर हर समय भगवान को
वक़्त  तो  आता नहीं  है  लोटकर  गुजरा हुआ
माफ़ियाँ  पर  मांगता रहता पकड़कर कान को
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नीरज आहुजा 
स्वरचित रचना 


मंगलवार, 11 अगस्त 2020

दो घड़ी के लिए - Do ghadi ke liye

Neeraj kavitavali


"दो घड़ी के लिए"

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मुक्तक 

ज़िन्दगी जल रही और उठता धुआँ

दो घड़ी  के  लिए भी  सुकूँ है कहाँ 

चैन  से  जी  रहा  सो  रहा कौन है

दर्द  ही  दर्द  है,  देखते   हम  जहाँ

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नीरज आहुजा 

स्वरचित रचना 

सोमवार, 10 अगस्त 2020

तुम्हें भुला देंगे - Tumhe bhula denge

 


Neeraj kavitavali

ग़ज़ल
बह्र-2122 1212 22
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हम तुम्हें यूँ कभी भुला देंगे

सांस  लेंगे  नहीं, दबा   देंगे 

याद होगी अगर कहीं दिल में
आँसुओं  से  उसे  मिटा  देंगे

तुम कभी हो नहीं सके मेरे
झूठ  कहते  रहे  वफ़ा  देंगे

प्यार होता अगर कदर होती
इश्क़ तुमको नहीं, दिखा देंगे 

जो नहीं चाहता कि मैं सुलझूं 
जुल्फ़ को खोल लट घुमा देंगे
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नीरज आहुजा 
स्वरचित रचना 

रविवार, 9 अगस्त 2020

चाँद को देखा करो - Chaand ko dekha karo


Neeraj kavitavali

"चाँद को देखा करो"

बह्र- 2122/2122-2122-212

मुक्तक 

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चाँद  को  देखा  करो, महताब  में ही  खुश  रहो

है हक़ीक़त कुछ नहीं बस ख़्वाब में ही खुश रहो

गर  नहीं  देती खुशी के पल  कभी  जो ज़िन्दगी

आँख से  बहते  रहें  जो, आब  में  ही खुश  रहो

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नीरज आहुजा 

स्वरचित रचना 

शनिवार, 8 अगस्त 2020

बात सारी भूल जा - Baat sari bhool ja

 

Neeraj kavitavali


बात सारी भूल जा
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मुक्तक 

कब तलक तू याद उसको  कर मरेगा दिल बता
जो  हुआ सो हो गया अब  बात  सारी  भूल जा
ज़िन्दगी आगे  पड़ी  है  और  पीछे   कुछ   नहीं
चार  दिन  जो  हैं  खुशी  से  जी  इसे आगे बढ़ा
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नीरज आहुजा 
स्वरचित 

शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

दौ पंछी उड़ते जाएं - Do panchhi udate jaayen

Neeraj kavitavali

"दौ पंछी उड़ते जाएं"
मुक्तक 
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दौ  पंछी  उड़ते ही जाएं, जहाँ तहाँ मुड़ते जाएं

ढूंढे  अपना ठौर ठिकाना, कहाँ रुकें  कैसे पाएं

धीरे-धीरे  ना उम्मीदों, की काली  बदली  उमड़ी

भारी होते थके हुए पर, को  सिकोड़े लोट आएं
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नीरज आहुजा 
स्वरचित 

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

चाँद नगर में रहने वाले - chand nagar me rahne waale


Neeraj kavitavali

 "चाँद नगर में रहने वाले"

मुक्तक

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चाँद नगर में रहनेवाले, ख़्वाब सितारों के बुनते

कर विश्वास उसी पर लेते, लोगों से जैसा सुनते

ढोल दूर के लगे सुहाने, देख हक़ीक़त डर जाएं

फूल छोड़ देते  जीवन में, बाकी  के  कांटे चुनते

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नीरज आहुजा

स्वरचित 

बुधवार, 5 अगस्त 2020

तू हमको हनुमान लगा - tu hamko hnumaan lga


Neeraj kavitavali

"तू हमको हनुमान लगा"

वर्षों  से लंबित कारज को,  पूरा करता जान लगा 
तेरे  हाथों  पूरे   होंगे, कौन  सका  अनुमान  लगा
दुनिया जो मर्जी कहती हो, राम दूत तू  बन आया
हम सब  वानर सेना तेरी, तू हमको हनुमान  लगा

मंगलवार, 4 अगस्त 2020

मन कितना समझाकर देखा - mann kitna samjhakar dekha


Neeraj Kavitavali

"मन कितना समझाकर देखा"
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 मुक्तक 

बहलाकर फुसलाकर देखा, मन कितना  समझाकर देखा
काम वही  फिर करता  है  ये, धोखा जिसमें खाकर देखा
रोज   उठाता  हूँ   मैं  इसको,  गिरा   पड़ा   जब  देखूँ तो
मुकर गया कथनी से अपनी, काग़ज़ पर लिखवाकर देखा
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नीरज आहुजा 
स्वरचित 

सोमवार, 3 अगस्त 2020

बीत सकल मधुमास गया - Beet sakal madhu maas gya


Neeraj kavitavali


"बीत सकल मधु मास गया" 
लावणी-छंद
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मैं  अकेलाा  बेपरवाह  क्यूँ,  तेरा   भी  तो  हिस्सा है
झांक जरा  तू  देख  गिरेबां, बीत गयाा जो किस्सा है
हर बार दिया  ताना मुझको, जब भी तेरे  पास  गया
बीत गयी अब रैना भुगतो, बीत सकल मधुमास गया
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नीरज आहुजा 
स्वरचित 

रविवार, 2 अगस्त 2020

तरह तरह के हथकंडे - tarah tarah ke hathkande


Neeraj kavitavali

"तरह तरह के हथकंडे" 
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तरह  तरह  के  हथकंडे  जब,  चलते  दुनियादारी में

भेद  नहीं  कर  पाते  हैं फिर, यार  और  अय्यारी  में

रहे भरोसा नहीं  किसी पर, हर  पल  मन संदेह  करे

कौन खड़ा है साथ  सहज हो, कौन खड़ा मक्कारी में

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नीरज आहुजा 
स्वरचित 

शनिवार, 1 अगस्त 2020

डायरी के पन्ने - Diary ke panne

Diary ke panne

मिला कुछ पुराना सा
अधूरा सा, 
खोले जब डायरी के
कुछ पन्ने तो
जो कि अब कभी
पूरे नहीं हो पाएंगे! 

Neeraj Kavitavali


हम छोड़ देते है
कुछ चीजे यूँ ही अधूरी 

फिर रह जाती है वो
उम्र भर के लिए
मन की टीस बनकर 

जैसे किसी घर दीवार
जिसमें दरारे पड़ने लगें
और उसकी मरम्मत ना हो
तो धीरे धीरे घर किसी
खंडहर मे तब्दील हो जाता है 

ठीक वैसे ही हमारे 
हमारे खयाल
हमारी इच्छाएँ
हमारे रिश्ते भी सब
मरम्मत के अभाव में
तब्दील हो जाते है
किसी न किसी खंडहर में। 
होंसला न करना
हिम्मत हार जाना
छोड़ कर पूराना
आगे की तरफ बढ़ जाना
यही सब करते रहते है
हम उम्र भर। 
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नीरज आहुजा 
स्वरचित 

कौन चाहता सम करना - kon chahta sam karna

Neeraj Kavitavali

"कौन चाहता सम करना"

ऊँची  कर  आवाजें  अपनी, दूजे  की  मद्धम करना
शौर शराबे तले  दबा सच, झूठ जिता परचम करना 
सब  ऐसी  दुनियादारी  में, हार  जीत  में  उलझ गए 
सब  चाहें  वर्चस्व  जमाना, कौन चाहता  सम करना

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नीरज आहुजा 
स्वरचित