"पहले जैसी बात नहीं"
सूरज उगता ढल जाता है होते अब दिन रात नहीं
समय गुजरता रहता है बस पहले जैसी बात नहीं
छोटी-छोटी खुशियों में जब, जीवन का रस लेते थे
हम बचपन में बेमतलब की, बातों पर हँस लेते थे
ठूंठ हुए मन की डालों पर, उगती कोई पात नहीं
समय गुजरता रहता है बस पहले जैसी बात नहीं
कश्ती अपनी और चली किस, धारा देखा करते थे
कूद पड़े कीचड़ देखा ना, गारा देखा करते थे
सावन आते जाते रहते, होती अब बरसात नहीं
समय गुजरता रहता है बस, पहले जैसी बात नहीं