अपनी बस सीमाएं देखे
खुदगर्जी में लिपटी रहती
मुफ्त की सेवाएं देखे
राजनीति जो करनी होती
लटके रहते सब मुद्दे
राम मंदिर भी न बनता
और लगी रहती 35-A
बीमारी की जड़ ना देखी
जहरीली हवाएं देखे
खुदगर्जी में लिपटी रहती
मुफ्त की सेवाएं देखे
जान बची सो लाखो पाए
वो जमाना बीत गया
दे कुर्बानी हार गए सब
बिजली पानी जीत गया
लहू बहाया वो ना दिखता
ना जलती चिताए देखे
खुदगर्जी में लिपटी रहती
मुफ्त की सेवाएं देखे
~नीरज आहुजा
स्वरचित
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