"दौ पंछी उड़ते जाएं"
मुक्तक
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दौ पंछी उड़ते ही जाएं, जहाँ तहाँ मुड़ते जाएं
ढूंढे अपना ठौर ठिकाना, कहाँ रुकें कैसे पाएं
धीरे-धीरे ना उम्मीदों, की काली बदली उमड़ी
भारी होते थके हुए पर, को सिकोड़े लोट आएं
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नीरज आहुजा
स्वरचित