शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

दौ पंछी उड़ते जाएं - Do panchhi udate jaayen

Neeraj kavitavali

"दौ पंछी उड़ते जाएं"
मुक्तक 
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दौ  पंछी  उड़ते ही जाएं, जहाँ तहाँ मुड़ते जाएं

ढूंढे  अपना ठौर ठिकाना, कहाँ रुकें  कैसे पाएं

धीरे-धीरे  ना उम्मीदों, की काली  बदली  उमड़ी

भारी होते थके हुए पर, को  सिकोड़े लोट आएं
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नीरज आहुजा 
स्वरचित