सोमवार, 7 सितंबर 2020

मुक्तक : शाम धीरे से गुज़रना - shaam dheere se guzarna

मुक्तक : शाम धीरे से गुज़रना

Neeraj kavitavali

बह्र - 2122 2122 2122 212

शाम  धीरे  से  गुज़रना,  रात  रहती  है  उधर

ताक  में  बैठी  तुम्हारे,  वो  लगा  पैनी  नज़र

चाँद ने  आकर कहा, कुछ  देर पहले कान में

रात की  बदमाशियों की, मैं तुम्हें कर दूँ ख़बर

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नीरज आहुजा