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सोमवार, 20 जुलाई 2020
उम्मीद की रोशनी - Ummeed ki roshni
मुक्तक
बह्र- 2212-2212-2212-2212
धर हाथ पर क्यूँ हाथ को बैठे रहो मलते रहो
क्यूँ दोष दो मिलता नहीं कुछ, आग में जलते रहो
किस्मत उसी की, कर्म की जो राह पर चलता रहे
मन में जगा उम्मीद की तुम रोशनी चलते रहो
नीरज आहुजा
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