सोमवार, 19 जुलाई 2021

कोरोना पर गीत : ऐसी रुस्वाई होगी - corona par geet


गीत नीचे लिखा है लेकिन उससे पहले थोड़ी सी चर्चा भी ज़रूरी है।

पिछले साल जब lockdown पर lockdown की स्थिति बनती जा रही थी तब यह गीत लिखा था। बस आख़िरी वाला जो अंतरा है वो अब लिखा है। पुरानी रचना इसलिए पोस्ट कर रहा हूँ क्योंकि अब  की परिस्थित भी बिल्कुल वैसी है।

एक तो सम्पूर्ण lockdown की कारण बहुत से लोग अपने रोजगार और नोकरियों से हाथ धो बैठे थे। भले किसी के पास बैठ कर खाने के लिए पैसे थे या नहीं लेकिन सभी को उस गंभीर परिस्थिति से ना चाहते हुए भी गुज़रना पड़ा।

और दूसरी तरफ़ कोरोना महामारी ने न जाने कितने अपनो को मृत्यु की चपेट मे ले लिया था। बहुत से लोगों की तो शादियाँ भी नहीं हो पाई या कहिए कि उसमें देरी का सामान करना पड़ा। बहुत लोग अपनों से मिल नहीं पाए। ऐसे लोगो की संख्या भी बहुत अधिक थी जो अन्य कईं कारणों से घर से बाहर गये हुए थे और वापिस अपने घर नहीं जा पाए। मेरी खुद की बहन और उसकी 4 साल की बेटी भी अचानक लगने वाले lockdown और Covide19 की दिन भर दिन होती critical situation  की वजह से 7 महीने तक अपने घर (ससुराल) नहीं जा पाई। क्योंकि तब सभी state border seal किये हुए थे और अगर कोई जबरदस्ती border cross करता हुआ पाया जाता था तो या तो उसे 15 दिन के लिए क्वारंटाइन कर लिया जाता था या फिर वही से वापिस भेज दिया था।

स्थिति तब भी गंभीर थी स्थिति अब और भी ज़्यादा गंभीर है। वायरस भी पहले से ज़्यादा खतरनाक और तेजी से फैलने वाला बताया जा रहा। जो कि positive rate और death rate को देखकर साफ साफ जाहिर भी हो रहा है। इस बार के रोज के आंकड़े पिछली बार के रोज के आंकड़ों से almost ढाई गुना तक पहुँच गए हैं। कुछ भी छिपा हुआ नहीं। हालात वाकई में बहुत ज़्यादा गंभीर है। जिसके कारण फिर से सम्पूर्ण lockdown लगने की ख़बरें फैलने लगी है। वही मंजर वही हालात फिर से लौट आया है। अब न जाने यह सब ख़त्म होगा और होगा भी या नहीं कुछ कह नहीं सकते। सिर्फ एक वैक्सीन ही आखिरी रास्ता है इस बीमारी से निजात पाने का, वो भी अगर सही असर कर जाए तो।
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शिर्षक - : ऐसी रुस्वाई होगी

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खुदा  कुआँ   आगे  को  होगा,  पीछे  को  खाई  होगी |
क्या  सोचा   था   कभी   हमारी , ऐसी  रुस्वाई   होगी |

Neeraj kavitavali



जगह  जगह पर  कहर  सभी पर, कोरोना  ने  ढाया है |
देख  रही  आँखों  से  अपनी ,  दुनिया  काला  साया है |
डर  कर  जोखिम  से  कितना  अब, घर  पर बैठेंगे सारे
मौत   रहेगी   हरदम    साथी,   जैसे    परछाई    होगी |
खुदा कुआँ......


किस  दिन अंधियारे में जगता, दीप दिखाई  देगा फिर |
निर्जन  पथ  चलते  राही  को, मीत दिखाई  देगा फिर |
किस दिन  गीत सजेंगे अधरों, पर फिर से खुशहाली के
रब  तेरे   दरबार  हमारी,  किस   दिन   सुनवाई  होगी |
खुदा कुआँ.......


जीवन  ऐसा  मुरझाया है, मन करता  मरजाने को |
डाली  डाली  सूख रही है, पत्ती  सब  झरजाने को |
नीर नहीं प्राणो का मिलता, खाद मिले ना आशा की
विपदा  ऐसी  भारी  पहले  देखी  ना  आई   होगी |
खुदा कुआँ........


छूट गई नो'करी किसी की, कहीं किसी ने जन खोया |
दूर रहा जब तक अपनों से, कितना मन हर पल रोया |
कोई  नवबंधन  में  खुद  को, बांध  सका ना  जीवन के
जिसने भी  खोया  है जो जो, क्या  अब भरपाई होगी |
खुदा कुआँ.......
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नीरज आहुजा
यमुनानगर (हरियाणा)