राहें मंज़िल भूल रही हैं, फूलों ने सौरभ छोड़ा
नदियों ने इतराकर अपना, सागर से रस्ता मोड़ा
वात नहीं रहती पेडों पर, पंछी नभ से ओझल हैं
सांस कहेगी किस दिन यह तन, मोचन में बनता रोड़ा
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नीरज आहुजा