शनिवार, 19 सितंबर 2020

मुक्तक : राहें मंज़िल भूल रही - raahen manzil bhool rahi

मुक्तक : राहें मंज़िल भूल रही

Neeraj kavitavali

राहें   मंज़िल  भूल   रही   हैं,  फूलों  ने  सौरभ  छोड़ा

नदियों  ने   इतराकर  अपना, सागर  से   रस्ता  मोड़ा

वात नहीं  रहती  पेडों  पर, पंछी  नभ  से  ओझल  हैं

सांस कहेगी किस दिन यह तन, मोचन में बनता रोड़ा

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नीरज आहुजा