ग़ज़ल
बह्र-122/122/122/12
खुशी के लम्हे को चुरा कर चलो
जियो जिंदगी हँस हँसाकर चलो
अगर सोचते हो कि फुरसत मिले
नहीं फिर मिलेगी लगाकर चलो
न कल का पता है न पल की खबर
खुदा फिर क्यूँ खुद को बनाकर चलो
नहीं साथ कुछ भी किसी के गया
मिला जो यहाँ सब लुटाकर चलो
गया दूर जो भी उसे लो बुला
हुआ फासला तो मिटाकर चलो
कमी देखने की है आदत बुरी
रहो दूर खुद को बचाकर चलो
उड़ो आसमां में कहीं भी मगर
जमीं को जमीं तो बनाकर चलो
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नीरज आहुजा