"चाँद को देखा करो"
बह्र- 2122/2122-2122-212
मुक्तक
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चाँद को देखा करो, महताब में ही खुश रहो
है हक़ीक़त कुछ नहीं बस ख़्वाब में ही खुश रहो
गर नहीं देती खुशी के पल कभी जो ज़िन्दगी
आँख से बहते रहें जो, आब में ही खुश रहो
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नीरज आहुजा
स्वरचित रचना