रविवार, 17 मई 2020

स्मृतियाँ - memories never change

हाँ, साथ थे हम
कुछ साल पहले। 
मिलते थे रोज
एक दूजे से
हाँ, होता था आभास
प्रेम का। 

अब नहीं मिलते
लेकिन प्रेम फिर भी
वैसा ही है, 
और तुम भी तो
बिल्कुल नहीं बदली
वैसी ही हो
जैसे बिछड़ते समय
देखा था तुम्हे। 
लेकिन मैं बदल रहा हूँ, 
हर-पल, हर-क्षण
बदल रहा हूँ। 

अब पहले की तरह
जल्दी से
शेव नहीं करता, 
हफ्ता हफ्ता भर
यूँ ही बढ़ने देता हूँ
दाढ़ी अपनी। 

पहले आईना देखकर 
इत्मीनान से
बाल संवारता था, 
अब नहीं। 
अब आँखें बंद करता हूँ 
और तुम्हारी यादों को
संवारता हूँ। 

देर तक जागना, 
देर तक सोना, 
संडे हो या मंडे
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। 

न तुम्हारे आने की, 
न तुम्हारे जाने की, 
न तुमसे मिलने की, 
अब किसी बात की
कोई फिक्र नहीं रहती। 

मगर तुम
आज भी वैसी ही हो
जैसे कल थी। 
वैसा ही जैसे तुम्हें
आख़िरी बार देखा था
शाम की दहलीज़ पर
खड़े होकर 
हाथ हिला कर 
मुझे अलविदा कहते हुए।
 

वही दुपट्टा,
वहीं सलवार कमीज, 
वही बिखरी हुई लटो को
बार बार कान के पीछे
ले जाती हुई तुम्हारी तर्जनी, 
और चेहरे पर
पसरी हुई उदासी
सब कुछ याद है मुझे। 

हाँ, सब कुछ वैसा ही है। 
क्योंकि स्मृतियां नहीं बदलती, 
उनकी उम्र नहीं ढलती, 
उनकी आदते, चेहरा
बिल्कुल वैसा ही रहता है
जैसे किसी लम्हे को
कैद कर लिया जाता है
कैमरे से तस्वीरों में, 
और हम देखते है
उम्र के दो पड़ाव एक साथ
एक बदलता हुआ
तो दूसरा 
समय को मात देता हुआ स्थिर। 

आज और बीते हुए
कल के संगम का
जरिया... मात्र ये
स्मृतियाँ ही तो है
जिन्हें हम संजोए रखते है
हमेशा हमेशा के लिये खुद में। 

नीरज आहुजा 
स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित 

तुमसे वादा रहा - tumse wada rha

तुमसे वादा रहा


ये दुनिया कितनी भी
बड़ी क्यूँ न हो जाए
तुमसे वादा रहा
हम मिलेंगे जरूर
कहीं न कहीं
किसी जगह
किसी मोड़ पर
फिर से 

लेकिन
पहले की तरह नहीं
ये मुलाकात कुछ अलग 
और अधूरी सी होगी

तुम किसी खूंटे से
बंधी हुई
और मैं भी बंधा हुआ
किसी खूंटे से
बात दिल की
नहीं कर पाएंगे 

कितना अजीब है न
एक समय था
जब हम दोनों ने
एक साथ बैठकर 
दो जिस्म एक जान होने की
कसमें खाई थी
लेकिन अब उतने ही 
असहज दिखाई देंगें
और ये मुलाकात भी बस
एक औपचारिकता
बनकर रह जाएगी 

अब तुम उतनी 
आकर्षक नहीं दिखोगी
जितनी पहले दिखती थी
मतलब छरहरी
शादी के बाद लड़कियाँ 
अक्सर बदल जाती है न

और मैं भी दिखूंगा
कुछ बदला हुआ सा
पहले से कमजोर
या मोटा सा
माथे के उपर के बाल
हल्के हल्के से
तब झड़ चुके होंगे 
शायद तुम पूछ भी लो
या हो सकता है
न भी पूछो
कि
"आगे के बाल कैसे झड़ गए।" 

लेकिन मेरा जवाब भी
यही होगा
"तुम्हारी याद में" 
इस बात पर तुम
हल्का सा मुस्कुरा दोगी
और मैं भी। 
ये हल्की सी मुस्कुराहट
हमारी मुलाकात को
थोड़ा सा
सहज बना देगी
बीच बीच में कभी
तुम चुप हो जाओगे
तो कभी मैं
कभी तुम्हारे चेहरे पर
उदासी के बादल आएंगे
तो कभी मेरे
जैसे जैसे वक्त
गुजरता जाएगा
दिल की धड़कने भी
बढ़ती जाएंगी।

दिल सहमा हुआ सा
जज्बात अनकहे से
घबराहट चरम पर
जैसे के हम
तय न कर पा रहे हो
कि हमें करना क्या है
और कहना क्या। 

आगे बढ़ नहीं पाएगें 
खूंटा भी तोड़ नहीं पाएंगे 
एक बार फिर से
बिछड़ने का वक्त
नजदीक होगा।
दर्द भी
पिछली बार की तरह ही
ऊफान पर होगा। 

एक सवाल जो
हम दोनों के
होठों पर होगा
पूछा जाएगा या नहीं,
मालूम नहीं। 

"क्या हम फिर से मिल सकते है? " 

ना तुम कुछ कह पाओगी, 
ना मैं

phone number भी
exchange होंगे 
या नहीं,
मालूम नहीं । 
हर चीज परिस्थितियों
पर ही निर्भर करेगी
लेकिन इतना मालूम है
कि दुनिया कितनी भी
छोटी क्यों न हो जाए
लेकिन हमारा मिलना
बस इत्तेफाक भर ही होगा
हम अक्सर 
नहीं मिला करेंगे 

हाँ ये वादा रहा
हम मिलेंगे जरूर
लेकिन पहले की तरह नहीं।


~नीरज आहुजा
स्वरचित रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित