रविवार, 17 मई 2020

तुमसे वादा रहा - tumse wada rha

तुमसे वादा रहा


ये दुनिया कितनी भी
बड़ी क्यूँ न हो जाए
तुमसे वादा रहा
हम मिलेंगे जरूर
कहीं न कहीं
किसी जगह
किसी मोड़ पर
फिर से 

लेकिन
पहले की तरह नहीं
ये मुलाकात कुछ अलग 
और अधूरी सी होगी

तुम किसी खूंटे से
बंधी हुई
और मैं भी बंधा हुआ
किसी खूंटे से
बात दिल की
नहीं कर पाएंगे 

कितना अजीब है न
एक समय था
जब हम दोनों ने
एक साथ बैठकर 
दो जिस्म एक जान होने की
कसमें खाई थी
लेकिन अब उतने ही 
असहज दिखाई देंगें
और ये मुलाकात भी बस
एक औपचारिकता
बनकर रह जाएगी 

अब तुम उतनी 
आकर्षक नहीं दिखोगी
जितनी पहले दिखती थी
मतलब छरहरी
शादी के बाद लड़कियाँ 
अक्सर बदल जाती है न

और मैं भी दिखूंगा
कुछ बदला हुआ सा
पहले से कमजोर
या मोटा सा
माथे के उपर के बाल
हल्के हल्के से
तब झड़ चुके होंगे 
शायद तुम पूछ भी लो
या हो सकता है
न भी पूछो
कि
"आगे के बाल कैसे झड़ गए।" 

लेकिन मेरा जवाब भी
यही होगा
"तुम्हारी याद में" 
इस बात पर तुम
हल्का सा मुस्कुरा दोगी
और मैं भी। 
ये हल्की सी मुस्कुराहट
हमारी मुलाकात को
थोड़ा सा
सहज बना देगी
बीच बीच में कभी
तुम चुप हो जाओगे
तो कभी मैं
कभी तुम्हारे चेहरे पर
उदासी के बादल आएंगे
तो कभी मेरे
जैसे जैसे वक्त
गुजरता जाएगा
दिल की धड़कने भी
बढ़ती जाएंगी।

दिल सहमा हुआ सा
जज्बात अनकहे से
घबराहट चरम पर
जैसे के हम
तय न कर पा रहे हो
कि हमें करना क्या है
और कहना क्या। 

आगे बढ़ नहीं पाएगें 
खूंटा भी तोड़ नहीं पाएंगे 
एक बार फिर से
बिछड़ने का वक्त
नजदीक होगा।
दर्द भी
पिछली बार की तरह ही
ऊफान पर होगा। 

एक सवाल जो
हम दोनों के
होठों पर होगा
पूछा जाएगा या नहीं,
मालूम नहीं। 

"क्या हम फिर से मिल सकते है? " 

ना तुम कुछ कह पाओगी, 
ना मैं

phone number भी
exchange होंगे 
या नहीं,
मालूम नहीं । 
हर चीज परिस्थितियों
पर ही निर्भर करेगी
लेकिन इतना मालूम है
कि दुनिया कितनी भी
छोटी क्यों न हो जाए
लेकिन हमारा मिलना
बस इत्तेफाक भर ही होगा
हम अक्सर 
नहीं मिला करेंगे 

हाँ ये वादा रहा
हम मिलेंगे जरूर
लेकिन पहले की तरह नहीं।


~नीरज आहुजा
स्वरचित रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें