छोटीकविता : नीम वा दरीचा
तू कटी पतंग-सी
उड़ रही है
उन्मुक्त गगन मे।
मैं ठहरा इक डोर से बंधा हुआ,
बस तुझे सोच कर ही,
सुकून पा लेता हूँ।
तू चल रही है अपने संग, हर पल,
नये रंग, नयी ख्वाहिशें लेकर
मैं किसी बदरंग-सी
जर्जर इमारत के
नीम वा दरीचे से
तुझे देखकर
दिल बहला लेता हूँ।
------------
नीरज आहुजा