बुधवार, 12 अगस्त 2020

वक़्त की मार - waqt ki maar

Neeraj Kavitavali

"वक़्त की मार"
बह्र- 2122/2122/2122/212
मुक्तक 

वक़्त  के  हाथों  पड़ी  है  मार जब  इन्सान को
याद करता आदमी फिर हर समय भगवान को
वक़्त  तो  आता नहीं  है  लोटकर  गुजरा हुआ
माफ़ियाँ  पर  मांगता रहता पकड़कर कान को
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नीरज आहुजा 
स्वरचित रचना