सोमवार, 22 जून 2020

स्वप्न लोक- एक हास्य कविता ( swapn lok ek hasya kavita)

स्वप्न लोक में जलघर
जलघर में जलपरी
जलपरी गोते लगाए
देखे बिना रहा न जाए

परी थी बहुत सुंदर
उछला मन का बंदर 
जीते जी अनुभव हुआ
स्वर्ग सदृश हम पाएं

मन में हुआ आभास
जाकर देखूँ पास
सत्य है, या है मिथ्या
कैसे पता लगाएं

कूद गए थे जल में
बिन सोचे ही पल में
झट से खूल गई नींद
गिरे पलंग से धांय

हड्डी न कोई टूटी
लेकिन किस्मत फूटी
स्वप्नलोक की परी को
हम छू भी ना पाएं