शनिवार, 12 सितंबर 2020

कुकुभछंद : दूर जहाँ तक भी दिखता है - Door jaha tak dikhta hai

कुकुभ छंद 

आज कुकुभ छंद पर अपना पहला प्रयास

विधान:-

💡कुकुभ छन्द अर्द्धमात्रिक छन्द है।

💡इस छन्द में चार पद होते हैं।

💡प्रत्येक पद में 30 मात्राएँ होती हैं।
💡प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं। जिनकी यति 16-14 निर्धारित होती है।

💡दो-दो पदों की तुकान्तता का नियम है। 

नोट :- प्रथम चरण यानि विषम चरण के अन्त को लेकर कोई विशेष आग्रह नहीं है। किन्तु, पदान्त दो गुरुओं से होना अनिवार्य है। इसका अर्थ यह हुआ कि सम चरण का अन्त दो गुरु से ही होना चाहिये। आईए अब इस पर एक प्रयास देखें..

Neeraj kavitavali

दूर जहाँ तक भी दिखता है, सममल बंजर धरती है।

सूख  चुके  हैं  दरिया सारे, आशा पल पल मरती है।

ठूंठ हुए  पेडों  से  अपना, छोड़  चुकी है  घर छाया। 

गिद्ध  मंडराते  देख  रहे, जीवित है कब तक काया।

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नीरज आहुजा