मंगलवार, 18 अगस्त 2020

छुपते फिरते हैं - Chhupte firte hai


"छुपते फिरते हैं"

छुपते फिर रहे हैं

अपनी सोच से

द्वंद से, विचारों से। 

भाग जाना चाहते है 

खुद से कहीं दूर,

किसी वीरान जगह पर

जहाँ देख न पाएं

ढूंढ न पाएं खुद को।

Neeraj kavitavali

आँखें बंद कर लेना चाहते है

और दबा देना चाहते है

मन में कौंधते हुए

सवालों को

अंतर्द्वंद को

जैसे दबा दी जाती हैं

बहुत सी खबरें अक्सर 

सनसनी फैलने के डर से

शहर को बचाने के लिए।


बस इसी तरह

मस्तिष्क को भय और

आतंक के माहौल से

बचाने का एक तरीक़ा 

यह भी है कि

होने दिया जाए

जो हो रहा

और उसे ही

अपनी नियती मानकर

ऐसे रहें जैसे कि कुछ 

हुआ ही ना हो।

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नीरज आहुजा 

स्वरचित