गुरुवार, 18 जून 2020

भूली बिसरी गलियाँ- bhooli bisri galiyan

वो भूली बिसरी गलियाँ पुरानी
कहाँ छोड़ आए है हम वो कहानी
वो गुजरा हुआ बचपन याद करलें
ढलती हुई भूलकर हम जवानी 

तपती हुई धूप में तर बदन हो
मन ये मगर खेलने मे मगन हो
बुलाते परिंदों को घोंसले थे
मगर बात हमने कहाँ थी मानी

लथपथ पसीने में हम झूमते थे
भरी दोपहर गलियां घूमते थे
गले सूखते थे दोस्तों के ही घर पे
घर अपने कब हम पीते थे पानी

झूलों से गिर के हंसने थे लगते
कपड़े हों गंदे तो चेहरे थे जगते
किसको बताएं अपनी गुजरिया 
पेड़ों पे लटकी कहाँ है निशानी

~नीरज आहुजा