मंगलवार, 1 सितंबर 2020

मुक्तक :किताबे-इश्क़ - kitaab e ishq

मुक्तक : किताबे-इश्क़
बह्र - 1222/1222/1222/1222

Neeraj kavitavali

लिए  फिरते है  मजनूँ  जो गुलाबों में नहीं आता
सिखाया जा नहीं सकता निसाबों  में नहीं आता
किताबे-इश्क़ को  सब  चाहते  पढ़ना  मगर ढाई
जो अक्षर  प्रेम का  होता किताबों  में नहीं आता

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नीरज आहुजा