मुक्तक : किताबे-इश्क़
बह्र - 1222/1222/1222/1222
लिए फिरते है मजनूँ जो गुलाबों में नहीं आता
सिखाया जा नहीं सकता निसाबों में नहीं आता
किताबे-इश्क़ को सब चाहते पढ़ना मगर ढाई
जो अक्षर प्रेम का होता किताबों में नहीं आता
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नीरज आहुजा
सिखाया जा नहीं सकता निसाबों में नहीं आता
किताबे-इश्क़ को सब चाहते पढ़ना मगर ढाई
जो अक्षर प्रेम का होता किताबों में नहीं आता