हलके से होले से
दबे पांव
करीब से मेरे
मुझे पता भी न चले
कि तुम कब आए थे
और कब चले गए।
तुम भी ओढ़ लो
मेरी खुशियों का चोला
और हो जाओ
मेरी खुशियों की तरह
ही मुक्तसर।
ये कब आती है और
कब चली जाती है
मुझे पता ही नहीं चलता।
वैलेंटाइन स्पैशल
महीना मोहब्बत वाला।
बने हर कोई दिल वाला।।
बन ठन के निकले हैं घर से।
समझे है, खुद को नन्दलाला।।
सूनी पड़ी है मोहब्बत कि गलिया।
हाथों में लेके फिरे प्रीत का प्याला।।
बन्द कमरा जहां सूरज कि पहुंच नहीं।
इन तमाम अन्धेरा को कहे हैं उजाला।।
~नीरज आहुजा
स्वरचित