वैलेंटाइन स्पैशल
महीना मोहब्बत वाला।
बने हर कोई दिल वाला।।
बन ठन के निकले हैं घर से।
समझे है, खुद को नन्दलाला।।
सूनी पड़ी है मोहब्बत कि गलिया।
हाथों में लेके फिरे प्रीत का प्याला।।
बन्द कमरा जहां सूरज कि पहुंच नहीं।
इन तमाम अन्धेरा को कहे हैं उजाला।।
~नीरज आहुजा
स्वरचित
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