क्या वही मजदूर है?
या जो घुमाता दिन भर
बाईक सड़को पर
पिज्जा की डिलीवरी के लिए,
उसको भी मजदूर कहेंगे।
जो चलाता हो उंगलियों को
कैल्कुलेटर और की. बोर्ड पर,
खपाता हो दिमाग अपना
हिसाब किताब के लिए
थकान तो उसे भी बहुत होती होगी।
एक लेखक जो
कुछ अच्छा लिखने की चाहत में
दिन भर सोचता है
और रात भर जागता है
जब तक कि कुछ अच्छा
लिख न ले तो उसे
चैन नहीं पड़ता।
क्या इसे भी मजदूरी कहेंगे?
या फिर मजदूरी होती है
मिट्टी को खोदना ही।
~नीरज आहुजा
स्वरचित