मुक्तक : देख कर दुनिया तुम्हारी
बह्र - 2122 2122 2122 212
देख कर दुनिया तुम्हारी, थर थराती ज़िन्दगी
चोर आते लूटते, अस्मत बचाती ज़िन्दगी
बंद दरवाज़ा किया है, डर बना दरबान है
झांकती बस खिड़कियों से, जी न पाती ज़िन्दगी
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नीरज आहुजा
देख कर दुनिया तुम्हारी, थर थराती ज़िन्दगी
चोर आते लूटते, अस्मत बचाती ज़िन्दगी
बंद दरवाज़ा किया है, डर बना दरबान है
झांकती बस खिड़कियों से, जी न पाती ज़िन्दगी
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नीरज आहुजा
बह्र-1222 1222 1222 1222
ज़मीं छत और दीवारें, वज़न लगता नहीं भारा
अकेला आदमी घर का, उठाता बोझ है सारा
बदलती रुत भले जितनी, नहीं थकते कदम इसके
किसी दर पर नहीं अटका, लगा हिम्मत का है नारा
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नीरज आहुजा