बह्र-1222 1222 1222 1222
ज़मीं छत और दीवारें, वज़न लगता नहीं भारा
अकेला आदमी घर का, उठाता बोझ है सारा
बदलती रुत भले जितनी, नहीं थकते कदम इसके
किसी दर पर नहीं अटका, लगा हिम्मत का है नारा
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नीरज आहुजा
गधा बन गया है। पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ घर का बोझ आदमी को ही उठाना पड़ता है।
गधा बन गया है। पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ घर का बोझ आदमी को ही उठाना पड़ता है।
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