शनिवार, 1 अगस्त 2020

डायरी के पन्ने - Diary ke panne

Diary ke panne

मिला कुछ पुराना सा
अधूरा सा, 
खोले जब डायरी के
कुछ पन्ने तो
जो कि अब कभी
पूरे नहीं हो पाएंगे! 

Neeraj Kavitavali


हम छोड़ देते है
कुछ चीजे यूँ ही अधूरी 

फिर रह जाती है वो
उम्र भर के लिए
मन की टीस बनकर 

जैसे किसी घर दीवार
जिसमें दरारे पड़ने लगें
और उसकी मरम्मत ना हो
तो धीरे धीरे घर किसी
खंडहर मे तब्दील हो जाता है 

ठीक वैसे ही हमारे 
हमारे खयाल
हमारी इच्छाएँ
हमारे रिश्ते भी सब
मरम्मत के अभाव में
तब्दील हो जाते है
किसी न किसी खंडहर में। 
होंसला न करना
हिम्मत हार जाना
छोड़ कर पूराना
आगे की तरफ बढ़ जाना
यही सब करते रहते है
हम उम्र भर। 
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नीरज आहुजा 
स्वरचित 

कौन चाहता सम करना - kon chahta sam karna

Neeraj Kavitavali

"कौन चाहता सम करना"

ऊँची  कर  आवाजें  अपनी, दूजे  की  मद्धम करना
शौर शराबे तले  दबा सच, झूठ जिता परचम करना 
सब  ऐसी  दुनियादारी  में, हार  जीत  में  उलझ गए 
सब  चाहें  वर्चस्व  जमाना, कौन चाहता  सम करना

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नीरज आहुजा 
स्वरचित