Diary ke panne
मिला कुछ पुराना सा
अधूरा सा,
खोले जब डायरी के
कुछ पन्ने तो
जो कि अब कभी
पूरे नहीं हो पाएंगे!
हम छोड़ देते है
कुछ चीजे यूँ ही अधूरी
फिर रह जाती है वो
उम्र भर के लिए
मन की टीस बनकर
जैसे किसी घर दीवार
जिसमें दरारे पड़ने लगें
और उसकी मरम्मत ना हो
तो धीरे धीरे घर किसी
खंडहर मे तब्दील हो जाता है
ठीक वैसे ही हमारे
हमारे खयाल
हमारी इच्छाएँ
हमारे रिश्ते भी सब
मरम्मत के अभाव में
तब्दील हो जाते है
किसी न किसी खंडहर में।
होंसला न करना
हिम्मत हार जाना
छोड़ कर पूराना
आगे की तरफ बढ़ जाना
यही सब करते रहते है
हम उम्र भर।
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नीरज आहुजा
स्वरचित
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