"दो घड़ी के लिए"
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मुक्तक
ज़िन्दगी जल रही और उठता धुआँ
दो घड़ी के लिए भी सुकूँ है कहाँ
चैन से जी रहा सो रहा कौन है
दर्द ही दर्द है, देखते हम जहाँ
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नीरज आहुजा
स्वरचित रचना