मंगलवार, 11 अगस्त 2020

दो घड़ी के लिए - Do ghadi ke liye

Neeraj kavitavali


"दो घड़ी के लिए"

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मुक्तक 

ज़िन्दगी जल रही और उठता धुआँ

दो घड़ी  के  लिए भी  सुकूँ है कहाँ 

चैन  से  जी  रहा  सो  रहा कौन है

दर्द  ही  दर्द  है,  देखते   हम  जहाँ

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नीरज आहुजा 

स्वरचित रचना