"अधूरा सफर"
मैं जानता हूँ,
मैं छोड़ दूंगा
ये सफर भी अधूरा
और शायद पकड़ लूंगा
कोई नयी अनजानी राह,
कोई पगडंडी
या फिर कोई कच्चा रास्ता
जो कि अचानक से
नजर आ जाता है
पक्की सड़कों पर चलते हुए
नीचे की तरफ।
क्योंकि मैं जानता हूँ
मेरी कोई मंजिल नहीं,
कोई पड़ाव नहीं,
कोई किनारा नहीं
जहांँ बैठकर कुछ पल के लिए
मैं ये सोच सकूँ कि मैंने
क्या पाया और क्या खोया
इस सफर पर चलते हुए।
मैं तो चलते चलते
छोड़ दूंगा
एक दिन ये सांसे भी
बिना किसी
आखिरी ख्वाहिश के।
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नीरज आहुजा
स्वरचित