शनिवार, 22 अगस्त 2020

ग़ज़ल: हँस हँसाकर चलो - has hsakar chalo


ग़ज़ल 
बह्र-122/122/122/12
खुशी  के  लम्हे   को  चुरा  कर  चलो
जियो   जिंदगी   हँस   हँसाकर  चलो

अगर  सोचते  हो   कि  फुरसत  मिले
नहीं   फिर   मिलेगी  लगाकर   चलो 

Neeraj kavitavali


न  कल  का पता है न पल की खबर
खुदा फिर क्यूँ खुद को बनाकर चलो

नहीं  साथ  कुछ  भी  किसी के गया 
मिला  जो  यहाँ  सब  लुटाकर  चलो

गया   दूर   जो  भी   उसे   लो  बुला 
हुआ   फासला  तो   मिटाकर  चलो

कमी   देखने   की   है   आदत  बुरी
रहो   दूर  खुद   को   बचाकर  चलो 

उड़ो   आसमां    में  कहीं भी  मगर 
जमीं  को   जमीं  तो  बनाकर  चलो
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नीरज आहुजा 

 

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