चरागों तले
अंधेरी रातों में
सोचकर तुझको
कि तुम आ जाओ जो
अचानक से
सामने मेरे
तो मैं क्या कहूँगा।
क्या मैं सकपका जाऊंगा
या बोल दूंगा
दिल की सारी बातें
बेधड़क तुमको
जो भी मैं सोचता हूँ
तुम्हारे बारें में
तन्हाई में बैठकर।
क्या तुम भी सोचती हो
मेरे बारे में
इस तरह ही
या
मैं ही दीवाना हूँ
आशिक़ हूँ वगैहर वगैहर
जो भी होते है नाम
पागल प्रेमियों के।
क्या तुम भी हो जाती हो
पागल, दिवानी
और लिखती हो
खत मुझे
इसी तरह ही
अंधेरी रातों में
तन्हाई में बैठकर
सोचकर मुझको।
~नीरज आहुजा
स्वरचित रचना, सर्वाधिकार सुरक्षित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें