कुछ भी सत्य से
बड़ा नहीं।
सत्य अटल है।
मेरे और तुम्हारे
नजरिए में अंतर
सत्य को पलट नहीं सकता।
हम जिसे सत्य कहते है
वो धारणा है
मेरी तुम्हारी
दोनों की अलग अलग।
जो तुम देखना चाहते हो
वो मैं नहीं, और जो मैं
देखना चाहता हूँ
वो तुम नहीं।
हम दोनों में कभी
एकरूपता नहीं आती।
भेद यही है,
समस्या भी यही है
और झगड़ा भी यही।
हम सत्य नहीं देखते
सत्य अटल है।
मेरे और तुम्हारे
नजरिए में अंतर
सत्य को पलट नहीं सकता।
हम जिसे सत्य कहते है
वो धारणा है
मेरी तुम्हारी
दोनों की अलग अलग।
जो तुम देखना चाहते हो
वो मैं नहीं, और जो मैं
देखना चाहता हूँ
वो तुम नहीं।
हम दोनों में कभी
एकरूपता नहीं आती।
भेद यही है,
समस्या भी यही है
और झगड़ा भी यही।
हम सत्य नहीं देखते
अपनी अपनी
जरूरत देखते है,
अपनी इच्छाएं और
अपनी आकांक्षाओं में लिप्त
एक दूसरे पर
आरोप प्रत्यारोप
मढ़ते है।
हम सत्य नही देखते
हम धारणाएं बनाते है और
उन्हें सत्य बोल देते है।
सत्य को सुनने और
देखने के बाद भी
समझने की
आवश्यकता होती है।
जरूरत देखते है,
अपनी इच्छाएं और
अपनी आकांक्षाओं में लिप्त
एक दूसरे पर
आरोप प्रत्यारोप
मढ़ते है।
हम सत्य नही देखते
हम धारणाएं बनाते है और
उन्हें सत्य बोल देते है।
सत्य को सुनने और
देखने के बाद भी
समझने की
आवश्यकता होती है।
~नीरज आहुजा
स्वरचित रचना