Pages
Home
Terms and conditions
Disclaimers
Privacy Policy
Contact us
मंगलवार, 7 जुलाई 2020
विजय वही फिर पाता है - vijay wahi fir pata hai
सुबह रोज जो निकले सूरज, शाम हुई ढल जाता है
नित्य अडिग निज पथ पर रहना,चलना हमें सिखाता है
धूप छाँव जीवन में सबके, आते जाते रहते हैं
रुका नहीं जो कर्म हीन हो, विजय वही फिर पाता है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें