मंगलवार, 7 जुलाई 2020

विजय वही फिर पाता है - vijay wahi fir pata hai

सुबह  रोज  जो  निकले सूरज, शाम हुई  ढल  जाता है

नित्य अडिग निज पथ पर रहना,चलना हमें सिखाता है

धूप  छाँव   जीवन   में   सबके,  आते  जाते   रहते  हैं

रुका नहीं जो  कर्म  हीन हो, विजय वही  फिर पाता है

नीरज कवितावली




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें