सोमवार, 6 जुलाई 2020

रात की बहती नदी - raat ki bahati ndi

दूरियाँ  जब  से  बढ़ी  है,  चाँद  तारे  देखते

रात  की  बहती नदी  के बन  किनारे देखते

याद ही  बाकी बची  जिसके  सहारे जी रहे

साथ में मिलकर हसीं जो दिन गुजारे देखते

बह्र- 2122-2122-2122-212

नीरज कवितावली

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