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रविवार, 5 जुलाई 2020
शायद यही मंजूर था- shayad yahi manzoor tha
बह्र : 2212 2212 2212 2212
धर हाथ तब बैठा रहा, जब तक कि दुश्मन दूर था
जब आ गले आफत गई, कहने लगा मजबूर था
भूं डाल कर हथियार को, हो कर्महीन लड़ता नहीं
फिर मान ले, भगवान को शायद यही मंज़ूर था
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