मंगलवार, 7 जून 2022

पत्थर दिल


शीर्षक : पत्थर दिल

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नीरज कवितावली

दोष देना, चिल्लाना

और अलग हो जाना

तुम्हार दु:ख नहीं, 

तुम्हारी प्रवृति है।

तुम बिना स्वार्थ के साथ 

नहीं रह पाते। 

इसिलिये

ना तुम कभी सम्पूर्ण हो पाते हो, 

और ना ही कभी मुझे 

सम्पूर्ण होने का अहसास दे पाते हो।

मन की एकाग्रता को भंग कर 

मन को आकर्षित करते हो

और दूर भाग जाते है।

बाद इसके मन तड़पता है

चोट खाता है और

ठोस हो जाता है। 

फिर दुनिया इसे "पत्थर दिल" 

कह कर बुलाती है।

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नीरज आहुजा 

यमुनानगर (हरियाणा) 

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