सोमवार, 26 जुलाई 2021
Raas chhand vidhaan
रविवार, 25 जुलाई 2021
Muktak : tera mera karte jate
शनिवार, 24 जुलाई 2021
Geet Dard hamare kon sunega
दर्द हमारे कौन सुनेगा।
कह कह हारे कौन सुनेगा।
टूट गई उम्मीदे सारी।
तिनका तिनका बारी बारी।
बीच भंवर है कश्ती अपनी
दूर किनारे कौन सुनेगा।
मुश्किल है जी पाना अब तो।
देख सभी चुप बैठे रब तो।
बिन तेरे हालत को अपनी
पालन हारे कौन सुनेगा।
कोशिश कर कर हार गये हम।
मन की सारी मार गये हम।
दर दर भटके लेकर दिल की
पत्थर सारे कौन सुनेगा।
धरती है यह आग उगलती।
आस नहीं अब कोई पलती।
आँख उठा फिर देखा नभ को
चाँद सितारे कौन सुनेगा।
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नीरज आहुजा
यमुनानगर (हरियाणा)
शुक्रवार, 23 जुलाई 2021
मुक्तक : हाय मैंने क्या किया, haye maine kya kiya
मुक्तक : हाय मैंने क्या किया
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बह्र- 2122-2122-2122-212
थी कदर जिसको नहीं, क्यूँ सौंप उसको दिल दिया।
जान बिन कैसे भरोसा अजनबी पर कर लिया।
ठोकरें खाई, मिली बदनामियाँ हरपल मुझे
सोचता हूँ रात दिन अब, हाय! मैंने क्या किया।
*****
नीरज आहुजा
यमुनानगर (हरियाणा)
गुरुवार, 22 जुलाई 2021
ग़ज़ल : मुहाने अलग हैं Diwaane alag hain
ग़ज़ल : दिवाने अलग हैं।
*************तिरंगे पकड़ मुँह दिखाने अलग हैं।
मगर बम्ब-बारुद बनाने अलग हैं।१
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लगा आग घर भी जलाने अलग हैं।२
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जिन्हें भौंकना देख कर शाह हरदम,
मिले हड्डियाँ तो दिवाने अलग हैं।३
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ज़ेहन घोल नफ़रत ग़ज़ल शे'र कहते,
कि हैं मुँह जितने ज़बाने अलग हैं।४
*********
कही बात कोई नहीं माननी पर,
सवालात सारे उठाने अलग हैं।५
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बताना पड़ेगा कि घर बैठना है,
मगर घूमने के बहाने अलग हैं।६
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कि जो पार सरहद, वही देश अंदर,
सभी एक ही हैं, मुहाने अलग हैं।७
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नीरज आहुजा
यमुनानगर (हरियाणा)
पदान्त-: अलग हैं
तुकान्त -: दिखाने, बनाने, जलाने, दिवाने, ज़बाने, उठाने, बहाने, मुहाने
बुधवार, 21 जुलाई 2021
ग़ज़ल : beet'te lamhaat ko mat chhediye
ग़ज़ल : मत छेड़िये
बीतते लम्हात को मत छेड़िये।।
फिर उन्हीं हालात को मत छेड़िये।। १
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फायदा तो कुछ नहीं, नुक़सान है
तेग से ज़ख़्मात को मत छेड़िये।। २
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मुल्क के हालात पर चर्चा करो
मुल्क में आफ़ात को मत छेड़िये।। ३
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हम वतन है क्या यही काफी नहीं
मज़हबी जज़्बात को मत छेड़िये।। ४
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बाजुएं दो काट दी भाई बना
बच गई सर-लात को मत छेड़िये।।५
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बाढ़ में सब बह गये है घर यहाँ
अब कभी बरसात को मत छेड़िये।।६
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जो गलत उसकी वकालत क्यूँ करो
बीच लाकर जात को मत छेड़िये।।७
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फूंक देते हैं शहर इस वास्ते
मिल रही खै़रात को मत छेड़िये।।८
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सब भले से लोग हैं 'नीरज' यहाँ
हाँ, मगर औक़ात को मत छेड़िये।।९
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क़ाफ़ीया-:
लम्हात- लम्हा का बहु
हालात- हाल का बहु
जख़्मात- जख़्म का बहु
आफ़ात- आफ़त का बहु
जज़्बात- भावनाएँ
सर-लात -
(भारत का उत्तर और दक्षिण भाग)
बरसात- बारिश
जात- जाति
ख़ैरात - दान
औक़ात - हैसियत
रदीफ़ - : "को मत छेड़िये
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नीरज आहुजा
यमुनानगर (हरियाणा)
मंगलवार, 20 जुलाई 2021
मुक्तक : कोरोना में कालाबाज़ारी Corona me kalabazari
मुक्तक : कोरोना में कालाबाज़ारी
सोमवार, 19 जुलाई 2021
कोरोना पर गीत : ऐसी रुस्वाई होगी - corona par geet
गीत नीचे लिखा है लेकिन उससे पहले थोड़ी सी चर्चा भी ज़रूरी है।
पिछले साल जब lockdown पर lockdown की स्थिति बनती जा रही थी तब यह गीत लिखा था। बस आख़िरी वाला जो अंतरा है वो अब लिखा है। पुरानी रचना इसलिए पोस्ट कर रहा हूँ क्योंकि अब की परिस्थित भी बिल्कुल वैसी है।
एक तो सम्पूर्ण lockdown की कारण बहुत से लोग अपने रोजगार और नोकरियों से हाथ धो बैठे थे। भले किसी के पास बैठ कर खाने के लिए पैसे थे या नहीं लेकिन सभी को उस गंभीर परिस्थिति से ना चाहते हुए भी गुज़रना पड़ा।
और दूसरी तरफ़ कोरोना महामारी ने न जाने कितने अपनो को मृत्यु की चपेट मे ले लिया था। बहुत से लोगों की तो शादियाँ भी नहीं हो पाई या कहिए कि उसमें देरी का सामान करना पड़ा। बहुत लोग अपनों से मिल नहीं पाए। ऐसे लोगो की संख्या भी बहुत अधिक थी जो अन्य कईं कारणों से घर से बाहर गये हुए थे और वापिस अपने घर नहीं जा पाए। मेरी खुद की बहन और उसकी 4 साल की बेटी भी अचानक लगने वाले lockdown और Covide19 की दिन भर दिन होती critical situation की वजह से 7 महीने तक अपने घर (ससुराल) नहीं जा पाई। क्योंकि तब सभी state border seal किये हुए थे और अगर कोई जबरदस्ती border cross करता हुआ पाया जाता था तो या तो उसे 15 दिन के लिए क्वारंटाइन कर लिया जाता था या फिर वही से वापिस भेज दिया था।
स्थिति तब भी गंभीर थी स्थिति अब और भी ज़्यादा गंभीर है। वायरस भी पहले से ज़्यादा खतरनाक और तेजी से फैलने वाला बताया जा रहा। जो कि positive rate और death rate को देखकर साफ साफ जाहिर भी हो रहा है। इस बार के रोज के आंकड़े पिछली बार के रोज के आंकड़ों से almost ढाई गुना तक पहुँच गए हैं। कुछ भी छिपा हुआ नहीं। हालात वाकई में बहुत ज़्यादा गंभीर है। जिसके कारण फिर से सम्पूर्ण lockdown लगने की ख़बरें फैलने लगी है। वही मंजर वही हालात फिर से लौट आया है। अब न जाने यह सब ख़त्म होगा और होगा भी या नहीं कुछ कह नहीं सकते। सिर्फ एक वैक्सीन ही आखिरी रास्ता है इस बीमारी से निजात पाने का, वो भी अगर सही असर कर जाए तो।
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शिर्षक - : ऐसी रुस्वाई होगी
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खुदा कुआँ आगे को होगा, पीछे को खाई होगी |
क्या सोचा था कभी हमारी , ऐसी रुस्वाई होगी |
१
जगह जगह पर कहर सभी पर, कोरोना ने ढाया है |
देख रही आँखों से अपनी , दुनिया काला साया है |
डर कर जोखिम से कितना अब, घर पर बैठेंगे सारे
मौत रहेगी हरदम साथी, जैसे परछाई होगी |
खुदा कुआँ......
२
किस दिन अंधियारे में जगता, दीप दिखाई देगा फिर |
निर्जन पथ चलते राही को, मीत दिखाई देगा फिर |
किस दिन गीत सजेंगे अधरों, पर फिर से खुशहाली के
रब तेरे दरबार हमारी, किस दिन सुनवाई होगी |
खुदा कुआँ.......
३
जीवन ऐसा मुरझाया है, मन करता मरजाने को |
डाली डाली सूख रही है, पत्ती सब झरजाने को |
नीर नहीं प्राणो का मिलता, खाद मिले ना आशा की
विपदा ऐसी भारी पहले देखी ना आई होगी |
खुदा कुआँ........
४
छूट गई नो'करी किसी की, कहीं किसी ने जन खोया |
दूर रहा जब तक अपनों से, कितना मन हर पल रोया |
कोई नवबंधन में खुद को, बांध सका ना जीवन के
जिसने भी खोया है जो जो, क्या अब भरपाई होगी |
खुदा कुआँ.......
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नीरज आहुजा
यमुनानगर (हरियाणा)
गीत नीचे लिखा है लेकिन उससे पहले थोड़ी सी चर्चा भी ज़रूरी है।
पिछले साल जब lockdown पर lockdown की स्थिति बनती जा रही थी तब यह गीत लिखा था। बस आख़िरी वाला जो अंतरा है वो अब लिखा है। पुरानी रचना इसलिए पोस्ट कर रहा हूँ क्योंकि अब की परिस्थित भी बिल्कुल वैसी है।
एक तो सम्पूर्ण lockdown की कारण बहुत से लोग अपने रोजगार और नोकरियों से हाथ धो बैठे थे। भले किसी के पास बैठ कर खाने के लिए पैसे थे या नहीं लेकिन सभी को उस गंभीर परिस्थिति से ना चाहते हुए भी गुज़रना पड़ा।
और दूसरी तरफ़ कोरोना महामारी ने न जाने कितने अपनो को मृत्यु की चपेट मे ले लिया था। बहुत से लोगों की तो शादियाँ भी नहीं हो पाई या कहिए कि उसमें देरी का सामान करना पड़ा। बहुत लोग अपनों से मिल नहीं पाए। ऐसे लोगो की संख्या भी बहुत अधिक थी जो अन्य कईं कारणों से घर से बाहर गये हुए थे और वापिस अपने घर नहीं जा पाए। मेरी खुद की बहन और उसकी 4 साल की बेटी भी अचानक लगने वाले lockdown और Covide19 की दिन भर दिन होती critical situation की वजह से 7 महीने तक अपने घर (ससुराल) नहीं जा पाई। क्योंकि तब सभी state border seal किये हुए थे और अगर कोई जबरदस्ती border cross करता हुआ पाया जाता था तो या तो उसे 15 दिन के लिए क्वारंटाइन कर लिया जाता था या फिर वही से वापिस भेज दिया था।
स्थिति तब भी गंभीर थी स्थिति अब और भी ज़्यादा गंभीर है। वायरस भी पहले से ज़्यादा खतरनाक और तेजी से फैलने वाला बताया जा रहा। जो कि positive rate और death rate को देखकर साफ साफ जाहिर भी हो रहा है। इस बार के रोज के आंकड़े पिछली बार के रोज के आंकड़ों से almost ढाई गुना तक पहुँच गए हैं। कुछ भी छिपा हुआ नहीं। हालात वाकई में बहुत ज़्यादा गंभीर है। जिसके कारण फिर से सम्पूर्ण lockdown लगने की ख़बरें फैलने लगी है। वही मंजर वही हालात फिर से लौट आया है। अब न जाने यह सब ख़त्म होगा और होगा भी या नहीं कुछ कह नहीं सकते। सिर्फ एक वैक्सीन ही आखिरी रास्ता है इस बीमारी से निजात पाने का, वो भी अगर सही असर कर जाए तो।
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खुदा कुआँ आगे को होगा, पीछे को खाई होगी |
क्या सोचा था कभी हमारी , ऐसी रुस्वाई होगी |
१
जगह जगह पर कहर सभी पर, कोरोना ने ढाया है |
देख रही आँखों से अपनी , दुनिया काला साया है |
डर कर जोखिम से कितना अब, घर पर बैठेंगे सारे
मौत रहेगी हरदम साथी, जैसे परछाई होगी |
खुदा कुआँ......
२
किस दिन अंधियारे में जगता, दीप दिखाई देगा फिर |
निर्जन पथ चलते राही को, मीत दिखाई देगा फिर |
किस दिन गीत सजेंगे अधरों, पर फिर से खुशहाली के
रब तेरे दरबार हमारी, किस दिन सुनवाई होगी |
खुदा कुआँ.......
३
जीवन ऐसा मुरझाया है, मन करता मरजाने को |
डाली डाली सूख रही है, पत्ती सब झरजाने को |
नीर नहीं प्राणो का मिलता, खाद मिले ना आशा की
विपदा ऐसी भारी पहले देखी ना आई होगी |
खुदा कुआँ........
४
छूट गई नो'करी किसी की, कहीं किसी ने जन खोया |
दूर रहा जब तक अपनों से, कितना मन हर पल रोया |
कोई नवबंधन में खुद को, बांध सका ना जीवन के
जिसने भी खोया है जो जो, क्या अब भरपाई होगी |
खुदा कुआँ.......
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नीरज आहुजा
यमुनानगर (हरियाणा)
रविवार, 18 जुलाई 2021
corona par muktak : Dekh kar man ro rha
मार कोरोना हमें क्यूँ, पी लहू खुश हो रहा।
काल की छायी घटा, जन और जीवन खो रहा।
दें भला कब तक दिलासा हौसला कर चुप रहें
अब सहन होता नहीं यह, देख कर मन रो रहा।
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नीरज आहुजा
यमुनानगर (हरियाणा)
Muktak : tasveerein chup hokar bhi
तस्वीरें चुप हो कर भी यह, हरपल साथ निभाती हैं।
कैद किये जीवन भर के पल, पलकों तले सजाती हैं।
देख देख जिनको हम जीते, ख़ुशहाली के सब मौसम
साथ नहीं जब होता साथी, मन कितना बहलाती हैं।
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नीरज आहुजा
यमुनानगर (हरियाणा)