सोमवार, 31 अगस्त 2020
चाँद मक्कारी करता है - chaand makkari karta hai
रविवार, 30 अगस्त 2020
मुक्तक : स्वीडन में दंगे - riots in sweden
मुक्तक : स्वीडन में दंगे
शनिवार, 29 अगस्त 2020
मुक्तक : चाँद बड़ा बातूनी है - chaand bda batooni hai
चाँद बड़ा बातूनी है
शुक्रवार, 28 अगस्त 2020
मुक्तक : समय गुजरता जाता है - samay gujarta jata hai
समय गुजरता जाता है
जैसा चाहा वैसा जीवन, जब यह ना बन पाता है
उम्मीदें पर पानी फिरता, दुख से जुड़ता नाता है
ले लेते अवसाद जनम फिर चिंता में डूबे रहते
क्या पाया क्या खोया में ही, समय गुजरता जाता है
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नीरज आहुजा
गुरुवार, 27 अगस्त 2020
मुक्तक : कोरोना का डर - Corona Ka Dar
कोरोना के डर से
बुधवार, 26 अगस्त 2020
मुक्तक : जीवन का अफ़साना लिख - Jeevan ka afsana likh
मुक्तक : जीवन का अफ़साना लिख
दुनिया है यह जलती शम्मा, खुद को इक परवाना लिखचाहत में मरजाता कैसे, है आतुर दीवाना लिखबाद मगर मरजाने के तब, याद करेगी यह दुनियासंघर्षों में कैसे बीता, जीवन का अफ़साना लिख---------------नीरज आहुजा
मंगलवार, 25 अगस्त 2020
ग़ज़ल: प्यार के क़ाबिल नहीं - pyar ke kabil nhi
ग़ज़ल
बह्र- 2122/2122/212
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दोस्ती गर प्यार के क़ाबिल नहीं
यार भी फिर यार के क़ाबिल नहीं
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बिक गया जो खुद किसी अहसान में
फिर कहीं ख़रिदार के क़ाबिल नहीं
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पास वो ही तो नहीं आता मिरे
जो कि इस ख़ुद्दार के क़ाबिल नहीं
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डूब जाती हैं समंदर बीच जो
कश्तिया़ँ मझदार के क़ाबिल नहीं
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गर कहीं फैला सके ना सनसनी
क्या ख़बर अख़बार के क़ाबिल नहीं
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बात बिन ही जो लगा इल्जाम दें
फूल होते खार के क़ाबिल दें
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आँख से ही पी लिया जिसने बदन
वो नज़र दीदार के क़ाबिल नहीं
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जानते तो हैं सभी पर मौन है
ज़िन्दगी की मार के क़ाबिल नहीं
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तोड़ दें जिस आदमी को मुश्किलें
जिंदगी की मार के क़ाबिल नहीं
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है दवा तू ही तो इस दिल की सनम
बाकी सब बीमार के क़ाबिल नहीं
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नीरज आहुजा
सोमवार, 24 अगस्त 2020
मुक्तक : पलटकर देख लेते तुम- palatkar dekh lete tum
पलटकर देख लेते तुम
रविवार, 23 अगस्त 2020
कोरोना से घबराते - corona se ghabrate
कोरोना से घबराते
सत्ता के गलियारों से हर, यह आवाजें निकल रही,
घर पर बैठो, बाहर सबको, बीमारी है निगल रही।
अर्थव्यवस्था और चिकित्सा, में उन्नत माने जाते,
देश आज लाचार हुए वो, कोरोना से घबराते।
भारत में जो फैल गया, ना रोग सँभाला जाएगा,
किया अगर सहयोग न हमने, हाहाकार मचाए गा।
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नीरज आहुजा
स्वरचित
शनिवार, 22 अगस्त 2020
ग़ज़ल: हँस हँसाकर चलो - has hsakar chalo
शुक्रवार, 21 अगस्त 2020
जिंदगी की रील में -Zindagi ki reel me
"ज़िन्दगी की reel में"
ज़िन्दगी की reel में
कोई cut paste की
option नहीं होती।
सब कुछ निरंतर
play होता रहता है।
किसी director को
action और cut कहने की भी
जरूरत नहीं पड़ती।
संवाद भी लिखित नहीं होते।
और retake भी नहीं लिया जाता।
हर shot को perfect
shot मान लिया जाता है।
किरदार भी acting नहीं करते
बल्कि उन्हें जीना पड़ता है
हर परिस्थिति को
अपनी सूझ बूझ और
क्षमता अनुसार।
जिन्दगी की रील
किसी 70 mm के परदे पर
release नहीं होती।
बल्कि ये तो
किसी theater पर चल रहे
drama की तरह
चलती है live.
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नीरज आहुजा
स्वरचित
गुरुवार, 20 अगस्त 2020
मानो मेरी अब - Maano meri ab
मानो मेरी अब
दस्तक देते हाथ थकेबोल बोल कर लबखोलो दिल का दरवाज़ामानो मेरी अबरोज तुम्हारी राहों मेंलेकर अपना दिल आतागीत प्रेम के लिखता थागीत प्रेम के हूँ गाताकब तलक सताओगेमीत बनोगे मेरे कबखोलो दिल का दरवाज़ामानो मेरी अबचंदा मेरा यार बन गयातारों से हो गई दोस्तीतुम होती तो अच्छा होतामिलकर करते मस्तीचाँद सितारे शबनमकरते सिफारिश सबखोलो दिल का दरवाज़ामानो मेरी अबसमय गवाना,पछतानामानोगे नहीं बातमैं देता हूँ प्रेम प्रस्तावतुम देते आघातजानोगे क्या प्रीत मेरीमर जाऊंगा तबखोलो दिल का दरवाज़ामानो मेरी अबपल पल करके कितने हीगुजर गए दिन सालकभी तो मुझसे पूछा होतातुमने मेरा हालबुलबुला नहीं पानी काजो जाता पल में दबखोलो दिल का दरवाज़ामानो मेरी अब
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नीरज आहुजा
स्वरचित
बुधवार, 19 अगस्त 2020
सब अच्छा हो जाएगा - sab achchha ho jayega
"सब अच्छा हो जाएगा"
बदलती है रुत,
मौसम और समय भी।
एकरस इस संसार में
क्या रह पाएगा।।
जो आज है कल नहीं।
जो कल होगा वो परसो नहीं।
वक्त का पहिया घुमेगा और
सब कुछ बीता जाएगा।।
यही धारणा लिए मन मे
पड़ता है जीना
भले हो दु:ख कितने भी
हार नहीं मान सकते
रखनी पड़ती है आशा
अच्छा होने की
और कहना पड़ता है
सब अच्छा हो जाएगा ।।
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नीरज आहुजा
स्वरचित
मंगलवार, 18 अगस्त 2020
छुपते फिरते हैं - Chhupte firte hai
"छुपते फिरते हैं"
छुपते फिर रहे हैं
अपनी सोच से
द्वंद से, विचारों से।
भाग जाना चाहते है
खुद से कहीं दूर,
किसी वीरान जगह पर
जहाँ देख न पाएं
ढूंढ न पाएं खुद को।
आँखें बंद कर लेना चाहते है
और दबा देना चाहते है
मन में कौंधते हुए
सवालों को
अंतर्द्वंद को
जैसे दबा दी जाती हैं
बहुत सी खबरें अक्सर
सनसनी फैलने के डर से
शहर को बचाने के लिए।
बस इसी तरह
मस्तिष्क को भय और
आतंक के माहौल से
बचाने का एक तरीक़ा
यह भी है कि
होने दिया जाए
जो हो रहा
और उसे ही
अपनी नियती मानकर
ऐसे रहें जैसे कि कुछ
हुआ ही ना हो।
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नीरज आहुजा
स्वरचित
सोमवार, 17 अगस्त 2020
थोड़ी सी हँसी - Thodi si hasi
"थोड़ी सी हँसी"
थोड़ी सी हँसी
बचाकर रखना
मेरे लिए
ताकी जब मैं तुमसे मिलूँ
तो तुम्हारे चेहरे पर
मेरे नाम की
एक हल्की सी
मुस्कान सजी हो।
अच्छा लगेगा मुझे
गर तुम ऐसा कर सको।
वैसे कोई उम्मीद नहीं
तुमसे कुछ पाने की
मगर फिर भी
पता नहीं क्यूँ
ख्वाहिश कर बैठता हूँ
जब भी देखता हूँ तुम्हें।
शायद सिर्फ इसलिए
कि मुझे तुमसे
बाते करना
तुम्हारे साथ वक्त बिताना और
तुम्हें यूँ ही कईं घंटो तक
टकटकी लगाकार देखना
अच्छा लगता है।
क्या तुमको भी
अच्छा लगता है
मुझसे बाते करना,
तुम्हारा नाम लेने भर से
मेरे चेहरे पर आने वाली
हल्की सी मुस्कान देखना?
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नीरज आहुजा
स्वरचित रचना
रविवार, 16 अगस्त 2020
कौन सच्चा हससफ़र है - kon sachcha hamsafar hai
कौन सच्चा हससफ़र है बात बिन मतलब करे
साथ देने को किसी का हाथ बिन मतलब करे
शनिवार, 15 अगस्त 2020
चलते चलते राह में - Chalte chalte raah me
"चलते चलते राह में"
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चलते चलते राह में
मिल जाते है जब हमें
अपने पुराने
खोए हुए पासवर्ड
तो धड़क उठता दिल
देखकर उनको
आता है तुफान
उफनती है लहरे
और टकराकर साहिल से
कह देना चाहती है
सब कुछ अपने दिल की
मगर रोक लेते हैं खुद को
गोद में उनकी
एक बरस के छोटे से
किसी और आई डी से
जनरेट हुए
ओ टी पी देखकर।
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नीरज आहुजा
स्वरचित
शुक्रवार, 14 अगस्त 2020
तुम अगर ख़फ़ा नहीं होती - Tum agar khafa nhi hoti
तुम अगर यूँ ख़फ़ा नहीं होती
जिंदगी ये जफ़ा नहीं होती
आइना देखकर मुकर जाऊं
अक्स में जिस दफ़ा नहीं होती
गुरुवार, 13 अगस्त 2020
चाँद सितारे निकल गये-chand sitare nikal gye
बुधवार, 12 अगस्त 2020
वक़्त की मार - waqt ki maar
मंगलवार, 11 अगस्त 2020
दो घड़ी के लिए - Do ghadi ke liye
"दो घड़ी के लिए"
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मुक्तक
ज़िन्दगी जल रही और उठता धुआँ
दो घड़ी के लिए भी सुकूँ है कहाँ
चैन से जी रहा सो रहा कौन है
दर्द ही दर्द है, देखते हम जहाँ
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नीरज आहुजा
स्वरचित रचना
सोमवार, 10 अगस्त 2020
तुम्हें भुला देंगे - Tumhe bhula denge
रविवार, 9 अगस्त 2020
चाँद को देखा करो - Chaand ko dekha karo
"चाँद को देखा करो"
बह्र- 2122/2122-2122-212
मुक्तक
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चाँद को देखा करो, महताब में ही खुश रहो
है हक़ीक़त कुछ नहीं बस ख़्वाब में ही खुश रहो
गर नहीं देती खुशी के पल कभी जो ज़िन्दगी
आँख से बहते रहें जो, आब में ही खुश रहो
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नीरज आहुजा
स्वरचित रचना
शनिवार, 8 अगस्त 2020
बात सारी भूल जा - Baat sari bhool ja
शुक्रवार, 7 अगस्त 2020
दौ पंछी उड़ते जाएं - Do panchhi udate jaayen
गुरुवार, 6 अगस्त 2020
चाँद नगर में रहने वाले - chand nagar me rahne waale
"चाँद नगर में रहने वाले"
मुक्तक
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चाँद नगर में रहनेवाले, ख़्वाब सितारों के बुनते
कर विश्वास उसी पर लेते, लोगों से जैसा सुनते
ढोल दूर के लगे सुहाने, देख हक़ीक़त डर जाएं
फूल छोड़ देते जीवन में, बाकी के कांटे चुनते
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नीरज आहुजा
स्वरचित