बुधवार, 30 सितंबर 2020
मुक्तक : तुम भूल गये - Tum bhool gaye
मंगलवार, 29 सितंबर 2020
मुक्तक : मुझे धोखा दिया तूने - mujhe dhokha diya tune
मुक्तक : मुझे धोखा दिया तूने
बह्र - 1222 1222 1222 1222
मुझे धोखा दिया तूने, मुझे दिल से निकाला है
कि तेरी बेरुख़ी ने दिल ये मेरा तोड़ डाला है
कभी होता था जिन होठों से मेरे नाम का सजदा
उसी होठों से तू अब गैर की जपती क्यूँ माला है
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नीरज आहुजा
शुक्रवार, 25 सितंबर 2020
छोटीकविता : नीम-वा-दरिचा
छोटीकविता : नीम वा दरीचा
तू कटी पतंग-सी
उड़ रही है
उन्मुक्त गगन मे।
मैं ठहरा इक डोर से बंधा हुआ,
बस तुझे सोच कर ही,
सुकून पा लेता हूँ।
तू चल रही है अपने संग, हर पल,
नये रंग, नयी ख्वाहिशें लेकर
मैं किसी बदरंग-सी
जर्जर इमारत के
नीम वा दरीचे से
तुझे देखकर
दिल बहला लेता हूँ।
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नीरज आहुजा
सोमवार, 21 सितंबर 2020
opinion : कंगना बनाम महाराष्ट्र सरकार - kangana ranaut vs maharashtra govt
कंगना बनाम महाराष्ट्र सरकार - kangana ranaut vs maharashtra govt
रविवार, 20 सितंबर 2020
मुक्तक : देख कर दुनिया तुम्हारी - Dekh kar duniya tumhari
मुक्तक : देख कर दुनिया तुम्हारी
देख कर दुनिया तुम्हारी, थर थराती ज़िन्दगी
चोर आते लूटते, अस्मत बचाती ज़िन्दगी
बंद दरवाज़ा किया है, डर बना दरबान है
झांकती बस खिड़कियों से, जी न पाती ज़िन्दगी
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नीरज आहुजा
मुक्तक : अकेला आदमी घर का - Akela aadami ghar ka
मुक्तक : अकेला आदमी घर का
बह्र-1222 1222 1222 1222
ज़मीं छत और दीवारें, वज़न लगता नहीं भारा
अकेला आदमी घर का, उठाता बोझ है सारा
बदलती रुत भले जितनी, नहीं थकते कदम इसके
किसी दर पर नहीं अटका, लगा हिम्मत का है नारा
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नीरज आहुजा
शनिवार, 19 सितंबर 2020
मुक्तक : राहें मंज़िल भूल रही - raahen manzil bhool rahi
मुक्तक : राहें मंज़िल भूल रही
राहें मंज़िल भूल रही हैं, फूलों ने सौरभ छोड़ा
नदियों ने इतराकर अपना, सागर से रस्ता मोड़ा
वात नहीं रहती पेडों पर, पंछी नभ से ओझल हैं
सांस कहेगी किस दिन यह तन, मोचन में बनता रोड़ा
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नीरज आहुजा
शुक्रवार, 18 सितंबर 2020
मुक्तक : दिल लगाने आ गये - Dil lagaane aa gaye
मुक्तक : दिल लगाने आ गये
बह्र - 2122 2122 2122 212
गुरुवार, 17 सितंबर 2020
ग़ज़ल : याद में नग़्मगी नहीं होती - yaad me nagmagii nhi hoti
ग़ज़ल
बह्र- 2122 1212 22
याद में नग़्मगी नहीं होती
आँख मेरी भरी नहीं होती
तुम अगर ना मुझे मिले होते
मुझसे यूँ शायरी नहीं होती
हसरतें टूट कर बिखरती हैं
अब यहाँ ज़िन्दगी नहीं होती
चाँद बनकर न दिल धड़कना तुम
दिल में जब चाँदनी नहीं होती
दिल कहीं और मैं कहीं खोया
इस तरह बेखुदी नहीं होती
मैं कदम से मिला कदम चलता
तुम अगर सोचती नहीं होती
जब से हो छोड़ कर गये मुझको
मुझसे फिर दिल्लगी नहीं होती
बात कुछ तो अलग लगी तुम में
वर्ना तुम आखिरी नहीं होती
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नीरज आहुजा
बुधवार, 16 सितंबर 2020
लावणी छंद : ज़हर वाली थाली - zahar wali thali
लावणी छंद : ज़हर वाली थाली
विधान :-
जिस थाली में ज़हर दिया है, उस थाली में छेद करो।
कलाकार हैं या पाखंडी, दोनों में अब भेद करो।
जनता ने विश्वास किया तो, तुमको नायक कह डाला।
लेकिन सर चढ़ बैठ गये तुम, जैसे चढ़ती है हाला।
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नीरज आहुजा
मंगलवार, 15 सितंबर 2020
ग़ज़ल : जिनकी ऊँची दुकान होती है
ग़ज़ल : जिनकी ऊँची दुकान होती है
बह्र- 2122 1212 22
जिनकी ऊँची दुकान होती है
तो अकड़ आसमान होती है
मार देते हैं तीर नज़रों के
आँख में क्या कमान होती है
ज़िन्दगी मौत की तरफ़ बहती
मौत जानिब ढलान होती है
ख़ास कुछ काम भी नहीं होता
काम देखूँ, थकान होती है
टूट जाते हैं इस लिए रिश्ते
तल्ख़ अक्सर ज़बान होती है
छूट दिल यह कभी नहीं पाता
याद ऐसी लगान होती है
हम किनारें हैं मिल नहीं सकते
इक नदी दरमियान होती है
दिल कहे कुछ दिमाग कुछ, दोनो
में बहुत खींच-तान होती है
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नीरज आहुजा
सोमवार, 14 सितंबर 2020
मुक्तक : तारों चंदा से पूछा - taron ne chanda se puchha
मुक्तक : तारों ने चंदा से पूछा
तारों ने चंदा से पूछा, जब आकर बारी बारी
नाम बता दिलबर का अपने, ना कर हमसे मक्कारी
चांद जमीं की और इशारा, करके फिर बतलाता है
खिड़की खोल मुझे जो देखें, सबसे है मेरी यारी
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नीरज आहुजा
रविवार, 13 सितंबर 2020
मुक्तक : चाँद अकेला देख - chand akela dekh
मुक्तक : चांद अकेला देख
चाँद अकेला देख, सितारे, करते जब छेड़ा खानी
कोई आँख मिलाना चाहे, कोई करता शैतानी
उठा पटक कर आसमान से, जब इनको फेंका जाता
टूटा तारा देख दुआएँ, मांगे हम बन अज्ञानी
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नीरज आहुजा
शनिवार, 12 सितंबर 2020
कुकुभछंद : दूर जहाँ तक भी दिखता है - Door jaha tak dikhta hai
कुकुभ छंद
आज कुकुभ छंद पर अपना पहला प्रयास
विधान:-
💡कुकुभ छन्द अर्द्धमात्रिक छन्द है।
💡इस छन्द में चार पद होते हैं।
💡प्रत्येक पद में 30 मात्राएँ होती हैं।
💡प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं। जिनकी यति 16-14 निर्धारित होती है।
💡दो-दो पदों की तुकान्तता का नियम है।
नोट :- प्रथम चरण यानि विषम चरण के अन्त को लेकर कोई विशेष आग्रह नहीं है। किन्तु, पदान्त दो गुरुओं से होना अनिवार्य है। इसका अर्थ यह हुआ कि सम चरण का अन्त दो गुरु से ही होना चाहिये। आईए अब इस पर एक प्रयास देखें..
दूर जहाँ तक भी दिखता है, सममल बंजर धरती है।
सूख चुके हैं दरिया सारे, आशा पल पल मरती है।
ठूंठ हुए पेडों से अपना, छोड़ चुकी है घर छाया।
गिद्ध मंडराते देख रहे, जीवित है कब तक काया।
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नीरज आहुजा
शुक्रवार, 11 सितंबर 2020
मुक्तक : इश्क़ में अक्सर - Ishq me aksar
मुक्तक : इश्क़ में अक्सर
बह्र - 2122 2122 2122 212
इश्क़ में अक्सर हमारा, हाल होता है यही
फैसला जज़्बात में ले, काम करते हैं वही
छोड़ दें रिश्ते पुराने, ढल नये किरदार में
सोच ना पाते कभी यह, क्या गलत है क्या सही
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नीरज आहुजा
गुरुवार, 10 सितंबर 2020
मुक्तक : तथाकथित मानवतावादी - so called humanitarian
मुक्तक : तथाकथित मानवतावादी
बुधवार, 9 सितंबर 2020
मुक्तक : पाप का घड़ा - paap ka ghada
मुक्तक : पाप का घड़ा
मंगलवार, 8 सितंबर 2020
मुक्तक : साथ ना तुम मांगना - sath na tum mangna
मुक्तक : साथ ना तुम मांगना
सोमवार, 7 सितंबर 2020
मुक्तक : शाम धीरे से गुज़रना - shaam dheere se guzarna
मुक्तक : शाम धीरे से गुज़रना
बह्र - 2122 2122 2122 212
शाम धीरे से गुज़रना, रात रहती है उधर
ताक में बैठी तुम्हारे, वो लगा पैनी नज़र
चाँद ने आकर कहा, कुछ देर पहले कान में
रात की बदमाशियों की, मैं तुम्हें कर दूँ ख़बर
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नीरज आहुजा
रविवार, 6 सितंबर 2020
मुक्तक : बात क्यों नहीं करते - Baat kyu nhi karte
मुक्तक : बात क्यों नहीं करते
हात के बढ़ाने पर हात क्यों नहीं करते
ठीक सरहदों पर हालात क्यों नहीं करते
गोलियाँ चलाकर मज़लूम मार देते हो
और पूछते हो फिर बात क्यों नहीं करते
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नीरज आहुजा
शनिवार, 5 सितंबर 2020
शिक्षक दिवस पर मुक्तक - shikshak divas par muktak
शिक्षक दिवस पर मुक्तक
शुक्रवार, 4 सितंबर 2020
कोरोना पर मुक्तक - corona par muktak
कोरोना पर मुक्तक
गुरुवार, 3 सितंबर 2020
ज़िन्दगी पर मुक्तक zindagi par muktak
जिंदगी पर मुक्तक
बुधवार, 2 सितंबर 2020
मुक्तक : सितंबर ले के आया क्या - sitambar kya laya
मुक्तक :सितंबर ले के आया क्या
मंगलवार, 1 सितंबर 2020
मुक्तक :किताबे-इश्क़ - kitaab e ishq
लिए फिरते है मजनूँ जो गुलाबों में नहीं आता
सिखाया जा नहीं सकता निसाबों में नहीं आता
किताबे-इश्क़ को सब चाहते पढ़ना मगर ढाई
जो अक्षर प्रेम का होता किताबों में नहीं आता
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नीरज आहुजा
सिखाया जा नहीं सकता निसाबों में नहीं आता
किताबे-इश्क़ को सब चाहते पढ़ना मगर ढाई
जो अक्षर प्रेम का होता किताबों में नहीं आता