मुक्तक : सर्दी का मौसम
सर्दी का मौसम आते ही, दिल यह मेरा घबराता
तारे ओझल होते नभ से, चाँद नहीं है दिख पाता
लम्बी लम्बी रातों में इन, तन्हाई नागिन डसती
कैसे गुजरेंगी बिन तेरे, सोच सोच मरता जाता
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नीरज आहुजा
सर्दी का मौसम आते ही, दिल यह मेरा घबराता
तारे ओझल होते नभ से, चाँद नहीं है दिख पाता
लम्बी लम्बी रातों में इन, तन्हाई नागिन डसती
कैसे गुजरेंगी बिन तेरे, सोच सोच मरता जाता
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नीरज आहुजा
बह्र - 1222 1222 1222 1222
मुझे धोखा दिया तूने, मुझे दिल से निकाला है
कि तेरी बेरुख़ी ने दिल ये मेरा तोड़ डाला है
कभी होता था जिन होठों से मेरे नाम का सजदा
उसी होठों से तू अब गैर की जपती क्यूँ माला है
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नीरज आहुजा
तू कटी पतंग-सी
उड़ रही है
उन्मुक्त गगन मे।
मैं ठहरा इक डोर से बंधा हुआ,
बस तुझे सोच कर ही,
सुकून पा लेता हूँ।
तू चल रही है अपने संग, हर पल,
नये रंग, नयी ख्वाहिशें लेकर
मैं किसी बदरंग-सी
जर्जर इमारत के
नीम वा दरीचे से
तुझे देखकर
दिल बहला लेता हूँ।
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नीरज आहुजा
देख कर दुनिया तुम्हारी, थर थराती ज़िन्दगी
चोर आते लूटते, अस्मत बचाती ज़िन्दगी
बंद दरवाज़ा किया है, डर बना दरबान है
झांकती बस खिड़कियों से, जी न पाती ज़िन्दगी
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नीरज आहुजा
बह्र-1222 1222 1222 1222
ज़मीं छत और दीवारें, वज़न लगता नहीं भारा
अकेला आदमी घर का, उठाता बोझ है सारा
बदलती रुत भले जितनी, नहीं थकते कदम इसके
किसी दर पर नहीं अटका, लगा हिम्मत का है नारा
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नीरज आहुजा
राहें मंज़िल भूल रही हैं, फूलों ने सौरभ छोड़ा
नदियों ने इतराकर अपना, सागर से रस्ता मोड़ा
वात नहीं रहती पेडों पर, पंछी नभ से ओझल हैं
सांस कहेगी किस दिन यह तन, मोचन में बनता रोड़ा
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नीरज आहुजा
बह्र - 2122 2122 2122 212
बह्र- 2122 1212 22
याद में नग़्मगी नहीं होती
आँख मेरी भरी नहीं होती
तुम अगर ना मुझे मिले होते
मुझसे यूँ शायरी नहीं होती
हसरतें टूट कर बिखरती हैं
अब यहाँ ज़िन्दगी नहीं होती
चाँद बनकर न दिल धड़कना तुम
दिल में जब चाँदनी नहीं होती
दिल कहीं और मैं कहीं खोया
इस तरह बेखुदी नहीं होती
मैं कदम से मिला कदम चलता
तुम अगर सोचती नहीं होती
जब से हो छोड़ कर गये मुझको
मुझसे फिर दिल्लगी नहीं होती
बात कुछ तो अलग लगी तुम में
वर्ना तुम आखिरी नहीं होती
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नीरज आहुजा
जिस थाली में ज़हर दिया है, उस थाली में छेद करो।
कलाकार हैं या पाखंडी, दोनों में अब भेद करो।
जनता ने विश्वास किया तो, तुमको नायक कह डाला।
लेकिन सर चढ़ बैठ गये तुम, जैसे चढ़ती है हाला।
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नीरज आहुजा
ग़ज़ल : जिनकी ऊँची दुकान होती है
बह्र- 2122 1212 22
जिनकी ऊँची दुकान होती है
तो अकड़ आसमान होती है
मार देते हैं तीर नज़रों के
आँख में क्या कमान होती है
ज़िन्दगी मौत की तरफ़ बहती
मौत जानिब ढलान होती है
ख़ास कुछ काम भी नहीं होता
काम देखूँ, थकान होती है
टूट जाते हैं इस लिए रिश्ते
तल्ख़ अक्सर ज़बान होती है
छूट दिल यह कभी नहीं पाता
याद ऐसी लगान होती है
हम किनारें हैं मिल नहीं सकते
इक नदी दरमियान होती है
दिल कहे कुछ दिमाग कुछ, दोनो
में बहुत खींच-तान होती है
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नीरज आहुजा
तारों ने चंदा से पूछा, जब आकर बारी बारी
नाम बता दिलबर का अपने, ना कर हमसे मक्कारी
चांद जमीं की और इशारा, करके फिर बतलाता है
खिड़की खोल मुझे जो देखें, सबसे है मेरी यारी
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नीरज आहुजा
चाँद अकेला देख, सितारे, करते जब छेड़ा खानी
कोई आँख मिलाना चाहे, कोई करता शैतानी
उठा पटक कर आसमान से, जब इनको फेंका जाता
टूटा तारा देख दुआएँ, मांगे हम बन अज्ञानी
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नीरज आहुजा
आज कुकुभ छंद पर अपना पहला प्रयास
विधान:-
💡कुकुभ छन्द अर्द्धमात्रिक छन्द है।
💡इस छन्द में चार पद होते हैं।
💡प्रत्येक पद में 30 मात्राएँ होती हैं।
💡प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं। जिनकी यति 16-14 निर्धारित होती है।
💡दो-दो पदों की तुकान्तता का नियम है।
नोट :- प्रथम चरण यानि विषम चरण के अन्त को लेकर कोई विशेष आग्रह नहीं है। किन्तु, पदान्त दो गुरुओं से होना अनिवार्य है। इसका अर्थ यह हुआ कि सम चरण का अन्त दो गुरु से ही होना चाहिये। आईए अब इस पर एक प्रयास देखें..
दूर जहाँ तक भी दिखता है, सममल बंजर धरती है।
सूख चुके हैं दरिया सारे, आशा पल पल मरती है।
ठूंठ हुए पेडों से अपना, छोड़ चुकी है घर छाया।
गिद्ध मंडराते देख रहे, जीवित है कब तक काया।
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नीरज आहुजा
बह्र - 2122 2122 2122 212
इश्क़ में अक्सर हमारा, हाल होता है यही
फैसला जज़्बात में ले, काम करते हैं वही
छोड़ दें रिश्ते पुराने, ढल नये किरदार में
सोच ना पाते कभी यह, क्या गलत है क्या सही
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नीरज आहुजा
बह्र - 2122 2122 2122 212
शाम धीरे से गुज़रना, रात रहती है उधर
ताक में बैठी तुम्हारे, वो लगा पैनी नज़र
चाँद ने आकर कहा, कुछ देर पहले कान में
रात की बदमाशियों की, मैं तुम्हें कर दूँ ख़बर
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नीरज आहुजा
हात के बढ़ाने पर हात क्यों नहीं करते
ठीक सरहदों पर हालात क्यों नहीं करते
गोलियाँ चलाकर मज़लूम मार देते हो
और पूछते हो फिर बात क्यों नहीं करते
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नीरज आहुजा
लिए फिरते है मजनूँ जो गुलाबों में नहीं आता
सिखाया जा नहीं सकता निसाबों में नहीं आता
किताबे-इश्क़ को सब चाहते पढ़ना मगर ढाई
जो अक्षर प्रेम का होता किताबों में नहीं आता
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नीरज आहुजा
जैसा चाहा वैसा जीवन, जब यह ना बन पाता है
उम्मीदें पर पानी फिरता, दुख से जुड़ता नाता है
ले लेते अवसाद जनम फिर चिंता में डूबे रहते
क्या पाया क्या खोया में ही, समय गुजरता जाता है
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नीरज आहुजा
ग़ज़ल
बह्र- 2122/2122/212
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दोस्ती गर प्यार के क़ाबिल नहीं
यार भी फिर यार के क़ाबिल नहीं
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बिक गया जो खुद किसी अहसान में
फिर कहीं ख़रिदार के क़ाबिल नहीं
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पास वो ही तो नहीं आता मिरे
जो कि इस ख़ुद्दार के क़ाबिल नहीं
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डूब जाती हैं समंदर बीच जो
कश्तिया़ँ मझदार के क़ाबिल नहीं
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गर कहीं फैला सके ना सनसनी
क्या ख़बर अख़बार के क़ाबिल नहीं
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बात बिन ही जो लगा इल्जाम दें
फूल होते खार के क़ाबिल दें
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आँख से ही पी लिया जिसने बदन
वो नज़र दीदार के क़ाबिल नहीं
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जानते तो हैं सभी पर मौन है
ज़िन्दगी की मार के क़ाबिल नहीं
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तोड़ दें जिस आदमी को मुश्किलें
जिंदगी की मार के क़ाबिल नहीं
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है दवा तू ही तो इस दिल की सनम
बाकी सब बीमार के क़ाबिल नहीं
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नीरज आहुजा
सत्ता के गलियारों से हर, यह आवाजें निकल रही,
घर पर बैठो, बाहर सबको, बीमारी है निगल रही।
अर्थव्यवस्था और चिकित्सा, में उन्नत माने जाते,
देश आज लाचार हुए वो, कोरोना से घबराते।
भारत में जो फैल गया, ना रोग सँभाला जाएगा,
किया अगर सहयोग न हमने, हाहाकार मचाए गा।
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नीरज आहुजा
स्वरचित
ज़िन्दगी की reel में
कोई cut paste की
option नहीं होती।
सब कुछ निरंतर
play होता रहता है।
किसी director को
action और cut कहने की भी
जरूरत नहीं पड़ती।
संवाद भी लिखित नहीं होते।
और retake भी नहीं लिया जाता।
हर shot को perfect
shot मान लिया जाता है।
किरदार भी acting नहीं करते
बल्कि उन्हें जीना पड़ता है
हर परिस्थिति को
अपनी सूझ बूझ और
क्षमता अनुसार।
जिन्दगी की रील
किसी 70 mm के परदे पर
release नहीं होती।
बल्कि ये तो
किसी theater पर चल रहे
drama की तरह
चलती है live.
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नीरज आहुजा
स्वरचित
मानो मेरी अब
दस्तक देते हाथ थकेबोल बोल कर लबखोलो दिल का दरवाज़ामानो मेरी अबरोज तुम्हारी राहों मेंलेकर अपना दिल आतागीत प्रेम के लिखता थागीत प्रेम के हूँ गाताकब तलक सताओगेमीत बनोगे मेरे कबखोलो दिल का दरवाज़ामानो मेरी अबचंदा मेरा यार बन गयातारों से हो गई दोस्तीतुम होती तो अच्छा होतामिलकर करते मस्तीचाँद सितारे शबनमकरते सिफारिश सबखोलो दिल का दरवाज़ामानो मेरी अबसमय गवाना,पछतानामानोगे नहीं बातमैं देता हूँ प्रेम प्रस्तावतुम देते आघातजानोगे क्या प्रीत मेरीमर जाऊंगा तबखोलो दिल का दरवाज़ामानो मेरी अबपल पल करके कितने हीगुजर गए दिन सालकभी तो मुझसे पूछा होतातुमने मेरा हालबुलबुला नहीं पानी काजो जाता पल में दबखोलो दिल का दरवाज़ामानो मेरी अब
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नीरज आहुजा
स्वरचित
"सब अच्छा हो जाएगा"
बदलती है रुत,
मौसम और समय भी।
एकरस इस संसार में
क्या रह पाएगा।।
जो आज है कल नहीं।
जो कल होगा वो परसो नहीं।
वक्त का पहिया घुमेगा और
सब कुछ बीता जाएगा।।
यही धारणा लिए मन मे
पड़ता है जीना
भले हो दु:ख कितने भी
हार नहीं मान सकते
रखनी पड़ती है आशा
अच्छा होने की
और कहना पड़ता है
सब अच्छा हो जाएगा ।।
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नीरज आहुजा
स्वरचित
"छुपते फिरते हैं"
छुपते फिर रहे हैं
अपनी सोच से
द्वंद से, विचारों से।
भाग जाना चाहते है
खुद से कहीं दूर,
किसी वीरान जगह पर
जहाँ देख न पाएं
ढूंढ न पाएं खुद को।
आँखें बंद कर लेना चाहते है
और दबा देना चाहते है
मन में कौंधते हुए
सवालों को
अंतर्द्वंद को
जैसे दबा दी जाती हैं
बहुत सी खबरें अक्सर
सनसनी फैलने के डर से
शहर को बचाने के लिए।
बस इसी तरह
मस्तिष्क को भय और
आतंक के माहौल से
बचाने का एक तरीक़ा
यह भी है कि
होने दिया जाए
जो हो रहा
और उसे ही
अपनी नियती मानकर
ऐसे रहें जैसे कि कुछ
हुआ ही ना हो।
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नीरज आहुजा
स्वरचित
"थोड़ी सी हँसी"
थोड़ी सी हँसी
बचाकर रखना
मेरे लिए
ताकी जब मैं तुमसे मिलूँ
तो तुम्हारे चेहरे पर
मेरे नाम की
एक हल्की सी
मुस्कान सजी हो।
अच्छा लगेगा मुझे
गर तुम ऐसा कर सको।
वैसे कोई उम्मीद नहीं
तुमसे कुछ पाने की
मगर फिर भी
पता नहीं क्यूँ
ख्वाहिश कर बैठता हूँ
जब भी देखता हूँ तुम्हें।
शायद सिर्फ इसलिए
कि मुझे तुमसे
बाते करना
तुम्हारे साथ वक्त बिताना और
तुम्हें यूँ ही कईं घंटो तक
टकटकी लगाकार देखना
अच्छा लगता है।
क्या तुमको भी
अच्छा लगता है
मुझसे बाते करना,
तुम्हारा नाम लेने भर से
मेरे चेहरे पर आने वाली
हल्की सी मुस्कान देखना?
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नीरज आहुजा
स्वरचित रचना